गरीबों की बचत बैंक और बाज़ार निगल गये / EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। भारतीय बैंकों द्वारा 68607 करोड़ रूपये बट्टे खाते में डालने की सनसनीखेज खबर सामने हैं। देश की डगमगाती आर्थिक स्थिति में यह बट्टा खाता साबित कर रहा है, की पिछले 70 साल से देश का मध्यम और निम्न वर्ग हाड़तोड़ मेहनत करता रहा और सरकार तथा बाज़ार उसकी मेहनत की कमाई पर गुलछर्रे उडाता रहा अब उसे निगल गया है। बिचौलिए और धन्ना सेठो की जेबे भरती रही, मध्यम और निम्न वर्ग की बचत को ये लोग योजनाबद्ध तरीके से निगलते रहे। लगता है देश के अर्थशास्त्री अपनी बात ठीक से कह नहीं सके या अब तक की सारी सरकारें मनमर्जी करती रही।

कहने को भारतीय आर्थिक माडल पश्चिमी सामाजिक-आर्थिक मॉडल से भिन्न है, ‘वैश्विक’ स्वीकृति मिल रही है और सभी के लिए फायदेमंद बताया जा रहा है? भारतीय माडल में निवेश व बचत की गुणवत्ता प्रधान हैं। परन्तु अब साफ दिख रहा है बाज़ार और सरकार की साझेदारी इस माडल के मूल बचत को मिलकर चूना लगा रहे हैं।इस समय घरेलू बचत भारत की सकल राष्ट्रीय आय से ज्यादा है इस तरह हमारा देश उन देशों में शामिल है, जहां बचत दर सर्वोच्च है। गरीब की उस बचत का दुरूपयोग होने की मिसाल 68607 करोड़ का यह बट्टाखाता है। 

देश के बैंकों ने तकनीकी तौर पर 50 बड़े विलफुल डिफाल्टर्स के 68607 करोड़ रुपए के कर्ज की बड़ी राशि को को बट्टा खाते में डाल दिया है। इन विलफुल डिफॉल्टर्स की सूची में भगोड़ा हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी भी शामिल है। यह बात भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत दी गई जानकारी से सामने आई है।सूचना का अधिकार कानून के तहत देश के केंद्रीय बैंक से 50 विलफुल डिफाल्टर्स का ब्योरा और उनके द्वारा लिए गए कर्ज की १६ फरवरी तक की स्थिति का के बारे में जानकारी मांगी गई थी। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण और वित राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी द्वारा संसद के बजट सत्र के दौरान 16 फरवरी को इसी विषय पूछे गए तारांकित प्रश्न का जवाब देने से इनकार कर दिया था।

जो जानकारी सरकार ने संसद में नहीं दी वह आरबीआई के केंद्रीय जन सूचना आधिकारी अभय कुमार ने 24 अप्रैल को दी, जिसमें कई चैंकाने वाले खुलासे हुए हैं। आरबीआई ने बताया कि इस राशि (६८६०७ करोड़ रुपये) में बकाया और टेक्निकली या प्रूडेंशियली 30 सितंबर, 2019 तक बट्टा खाते में डाली गई रकम है।पहले आरबीआई ने ही सुप्रीम कोर्ट के दिसंबर 2015 में आये फैसले का हवाला देते हुए विदेशी कर्जदारों के संबंध में जानकारी देने से मना कर दिया था।

इन डिफाल्टर्स की सूची मेहुल चोकसी की कंपनी गीतांजलि जेम्स लिमिटेड शीर्ष पर है, जिस पर 5492 करोड़ रुपये का कर्ज है। इसके अलावा, गिली इंडिया लिमिटेड और नक्षत्र ब्रांड्स लिमिटेड ने क्रमश: 1447 करोड़ रुपये और 1109 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था। चोकसी इस समय एंटीगुआ और बारबाडोस द्वीप समूह के नागरिक है जबकि उसका भांजा व भगोड़ा हीरा कारोबारी नीरव मोदी इस समय लंदन में है।

सूची में दूसरे स्थान पर आरईआई एग्रो लिमिटेड का नाम है, जो 4314 करोड़ रुपये का कर्जदार है। इस कंपनी के निदेशक संदीप झुनझुनवाला और संजय झुनझुनवाला करीब एक साल से प्रवर्तन निदेशालय की जांच के घेरे में हैं। एच ई जी चलानेवाले झुनझुनवाला ग्रुप के स्थानीय अधिकृत प्रतिनिधि ने संजय और संदीप का एच ई जी चलानेवाले झुनझुनवाला ग्रुप से किसी भी प्रकार के सम्बन्ध से इंकार किया है |

इस सूची में आगे 4000 करोड़ रुपये लेकर फरार हीरा कारोबारी जतिन मेहता की कंपनी विन्सम डायमंड एंड ज्वेलरी का नाम है जिस पर 4076 करोड़ रुपये का कर्ज है। केंद्रीय जांच ब्यूरो विभिन्न बैंकों से जुड़े इस मामले की जांच कर रहा है।इसके बाद 2000 करोड़ रुपए की श्रेणी में कानपुर की कंपनी रोटोमक ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड है जोकि कोठारी समूह की कंपनी है, जिस पर 2850 करोड़ रुपए का कर्ज है। इसके अलावा, पंजाब की कुडोस केमी (2326 करोड़ रुपये), बाबा रामदेव और बालकृष्ण की कंपनी समूह इंदौर स्थित रुचि सोया इंडस्ट्रीज (2212 करोड़ रुपये) और ग्वालियर की जूम डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड (2012 करोड़ रुपये) जैसी कंपनियों के नाम इस सूची में शामिल हैं।

1000 करोड़ रुपये के सेगमेंट में आने वाली कंपनियों में 18 कम्पनियों के नाम हैं। इन कंपनियों में अहमदाबाद स्थित हरीश आर. मेहता की कंपनी फोरएवर प्रीसियस ज्वेलरी एंड डायमंड्स प्राइवेट लिमिटेड (1962 करोड़ रुपये), भगोड़ा शराब कारोबारी विजय माल्या की बंद हो चुकी कंपनी किंगफिशर एयरलाइंस लिमिटेड (1943 करोड़ रुपये) शामिल हैं।

1000 करोड़ से कम की श्रेणी की में 25 कंपनियां शामिल हैं, जिनमें व्यक्तिगत व कंपनी समूह भी हैं। इन पर कर्ज की रकम 605 करोड़ रुपये से 984 करोड़ रुपये तक है।बैंकों को चूना लगाने वाले इन 50 बड़े विलफुट डिफाल्टर्स में ६ हीरा और सोने के आभूषण के कारोबार से जुड़े हैं।इनमें से अधिकांश ने प्रमुख राष्ट्रीय बैंकों को पिछले कई वर्षों से चूना लगाया है और कई लोग या जो देश छोड़कर भाग गए हैं या विभिन्न जांच एजेंसियों की जांच के घेरे में हैं।

अब तो साफ़ है कि मध्यम और निम्न आय वर्ग की बचत निगली जा चुकी है। सरकार विदेश से भगोड़ो को ला नहीं पा रही है। पता नहीं राहुल गाँधी संसद में विशेषाधिकार का प्रश्न खड़ा करेंगे या नहीं ?उम्मीद सर्वोच्च न्यायलय से है उसी को स्वत: संज्ञान लेकर कुछ करना चाहिए। वैसे अर्थशास्त्र का यह भारतीय माडल फेल हो गया है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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