जुन्नारदेव आदिवासी छात्रावास नाबालिग यौनशोषण कांड - क्या है पूरा मामला।


EDITORIAL: ANAND BANDEWAR: जुन्नारदेव विकासखंड के नवेगांव थाना अंतर्गत बेलगांव माल की 14 वर्षीय नाबालिग आदिवासी बालिका जो कि स्थानीय कन्या परिसर छात्रावास में अध्ययनरत है। उसका यौन शोषण लगातार कई महीनों से उस के गांव के एक 28 वर्षीय युवक के द्वारा किया जा रहा था। जिसके चलते वह बालिका न सिर्फ गर्भवती हो गए बल्कि नौ माह तक उसकी गर्भावस्था बनी रही। बताया जा रहा है कि इस बीच उसने सभी से यह छुपा कर रखा लेकिन 5 दिसंबर 2019 को जब उसे पेट में असहनीय दर्द हुआ तो यह सच सबके सामने आ गया, कि वह गर्भवती है। लड़की को स्थानीय सरकारी अस्पताल ले जाया गया। वहां पर उसका प्रसव हुआ, बच्चा मृत जन्मा। जुन्नारदेव जैसे छोटे शहरों के लिए ये घटना बड़ी है। यह घटना आदिम जाति कल्याण विभाग, बीईओ कार्यालय जुन्नारदेव, और छात्रावास के समस्त अधिकारीयों, कर्मचारियों पर बड़ा सवाल खड़ा करती है।

14-15 साल की मासूम जिसे यह तक नहीं पता कि उसके लिए सही और गलत क्या है उसका महिमामंडन कुछ इस प्रकार से किया जाना कि उसका किसी पुरुष के साथ अवैध संबंध था लोगों की समझ पर सवालिया निशान खड़ा करता है आप कैसे तय कर सकते हैं कि एक नाबालिक यह समझती है कि उसके जीवन के लिए क्या सही है या क्या गलत है। जिस युवक ने पिछले कई महीनों उसका यौन शोषण किया उसकी उम्र 28 साल है इसका नाम नीलेश कुमरे रहे है। उम्र के अंतर से आप समझ सकते हैं कि इस युवक ने इस बालिका को अपने झांसे में फंसा कर उसका लगातार शारीरिक शोषण किया। मामले के तूल पकड़ते ही प्रशासन ने अपराधी के विरुद्ध धारा 363, 366, 376 (3), 376 (2), 376 (J), 376 (N) एवं पास्को एक्ट के तहत प्रकरण को दर्ज करके गिरफ्तार कर लिया है।

लड़की के परिजनों ने इस बारे में साफ तौर पर कहा कि क्योंकि लड़की छात्रावास में रहती थी इसलिए उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। साथ ही लड़की ने अपने साथ हुए दुष्कर्म के बारे में कभी उनसे कोई चर्चा नहीं की। इसीलिए साफ तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। वही छात्रावास के अधिकारियों ने यह कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की है कि लड़की गर्मियों की छुट्टियों पर अपने घर गई हुई थी जहां पर उसके साथ यह घटना घटी है इसलिए हम जिम्मेदार नहीं है।

छात्रावास का प्रशासन इसलिए भी सवालों के घेरे में है क्योंकि बीते कई महीनों से छात्रावास में रह रहे छात्रों का कोई भी स्वास्थ्य परीक्षण नहीं हुआ था बताया जा रहा है कि लगभग 6 महीने हो चुके हैं और अभी तक बालिकाओं का स्वास्थ्य परीक्षण नहीं किया गया, वहीं दूसरी तरफ यह कहा जा रहा है कि बीते अगस्त के महीने में ही छात्राओं का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया था कहना मुश्किल है कि सच क्या है। जबलपुर संभाग के कमिश्नर द्वारा छिन्दवाडा जिले के विकासखंड मुख्यालय जुन्नारदेव के शासकीय कन्या शिक्षा परिसर में घटित घटना के संबंध में राजस्व अनुविभागीय अधिकारी जुन्नारदेव के प्रतिवेदन के आधार पर विकासखंड शिक्षा अधिकारी जुन्नारदेव और हाई स्कूल हनोतिया के प्राचार्य श्री ए.आर.लोखंडे को अपने पदीय दायित्वों का निर्वहन नहीं करने पर तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। एवं संबंधित अधीक्षका सुमन अरुण परते को निलंबित किया गया, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह क्या काफी है। क्या बालिकाओं को यह नहीं सिखाया गया कि कैसे इस प्रकार के शातिर लोगों से बचकर रहा जाए, ऐसी क्या बात है जो उन्हें अपने मां बाप अपनी शिक्षिकाओं को समय-समय पर अवश्य बताना चाहिए।

लेकिन लगता है कि छात्रावास प्रशासन इस वक्त केवल अपना 'मलाई का कटोरा' बचाने की जुगत में लगा हुआ है क्योंकि बताया जा रहा है कि इस छात्रावास में करोड़ों रुपए का फंड आता है। लेकिन अगर आप छात्रावास की हालत, वहां का रहन सहन और बच्चों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा की व्यवस्था देखें तो समझ सकते हैं कि करोड़ों का फंड किसकी जेबों में जा रहा है। इसलिए जब अपनी नौकरी और छात्रावास का करोड़ों रुपया अपने हाथ से निकलता दिखाई दिया तो संबंधित अधिकारी और शिक्षक धरना प्रदर्शन अधिकारियों से अपनी अपील और हड़ताल जैसे हरकतों पर उतर आए लेकिन वहीं इनमें से किसी ने भी छात्रा के पक्ष में ना तो अभी तक कोई अपना बयान दिया है ना ही छात्रा के प्रति न्याय की लड़ाई में उसके साथ खड़े होने का आश्वासन भी दिया है। इन शिक्षकों और अधिकारियों को अपने साथ हुआ अन्याय तो नजर आ रहा है लेकिन उन्हें जी नहीं नजर आ रहा कि उनकी अनदेखी और लापरवाही उनकी छात्रा के प्रति लापरवाही ने उसके जीवन को नष्ट कर दिया यदि वह जागृत रहते अपने बच्चों को सही शिक्षा देते तो शायद बालिका यह समझ पाती कि क्या सही है और क्या गलत है आज उसका जीवन किसी अंधेरे मोड़ पर आकर नहीं खड़ा होता।

क्या साजिश के तहत मामले को दबाने की कोशिश?  

आपको बता दें कि छात्रावास की अधीक्षका सुमन परते कांग्रेस नेता अरुण परते की पत्नी हैं, और इस मामले में सुमन करते की कार्यप्रणाली पर भी लगातार सवाल उठ रहे हैं। क्योंकि सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार- बीते लगातार छह माह से पीड़िता का स्वास्थ्य परीक्षण ना होना, स्वास्थ्य पंजी में भी इस बालिका का नाम का उल्लेख नहीं होना, लगातार 9 माह की गर्भावस्था के दौरान उसके शारीरिक संरचना या भूगोल में आए परिवर्तन को आखिर क्यों नजर अंदाज किया गया, किसी भी गर्भवती महिला के गर्भधारण के दौरान उसके शरीर के आंतरिक और बाह्य रूप में खासा परिवर्तन आ जाता है, गर्भावस्था के दौरान व्यवहारिक परिवर्तन। साथ ही डॉक्टर रुपेश और एक अन्य सहायक महिला डॉक्टर भी सवालों के घेरे में हैं क्योंकि सुमन परते के अनुसार अगस्त में इनके द्वारा जाँच की गयी थी।

इस मामले में एक गंभीर मसला यह भी है कि इस पूरे प्रकरण को गलत तरीके से प्रचारित किया गया। इस पूरे प्रकरण को यह कहकर लोगों तक पहुंचाया गया कि छात्रावास की एक लड़की ने मृत शिशु को जन्म दिया। जबकि वह एक पीड़िता है और मामला उसके यौन शोषण का है, इस पूरे घटनाक्रम में अगर आप देखें तो जैसे लोगों ने उस लड़की को भी सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया है। शायद उसका अपराध यही है कि देश में हो रही यौन शोषण और बलात्कार की गंभीर घटनाओं की तरह उसका अंजाम नहीं हुआ और वह अभी तक जीवित और सुरक्षित है। लोगों में यह चर्चा का विषय तो है लेकिन गंभीरता से इस घटना से सबक नहीं लेना चाहते।

अधिकारियों एवं शिक्षकों में अपनी नौकरी और हाथ से छूट रहे फंड को लेकर चिंता तो है लेकिन लड़की के प्रति हुए अन्याय और उनकी लापरवाही को लेकर कोई आत्मचिंतन नहीं है। क्या हर बार पीड़ित लड़की का फांसी पर लटकना या जला कर मार दिया जाना जरुरी है।

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