मध्यप्रदेश कांग्रेस में ऐसा कब तक चलेगा ? | EDITORIAL by Rakesh Dubey

भारतीय जनता पार्टी जिस बात को पिछले 15 वर्ष से कह रही है, उसे मध्यप्रदेश कांग्रेस भी मानने लगी है। प्रदेश कांग्रेस के सर्वेसर्वा कमलनाथ का मानना है कि “ दिग्विजय सिंह का कार्यकाल बुरा था और उसकी सजा जनता ने कांग्रेस को दी है।” चुनाव की दहलीज पर खड़े मध्यप्रदेश में ऐसी स्वीकारोक्ति कांग्रेस की उस एकता पर प्रश्न चिन्ह खड़े करती है, जिसके दम पर वो मध्यप्रदेश में काबिज़ होना चाहती है। फ़िलहाल इस एकता का जिम्मा दिग्विजय सिंह के ही पास है, और कमलनाथ अखिल भारतीय कांग्रेस द्वारा घोषित जिम्मेदार और ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के ब्लू आईड ब्याय। इन सारे क्षत्रपों से इत्तर प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष है जो न्याय यात्रा को लेकर घूम रहे हैं, शायद इन दिनों सागर में हैं। पहला सवाल कांग्रेस चुनाव और वर्तमान माहौल से जुडा है कि कांग्रेस में ऐसा कब तक चलेगा ?

कमलनाथ की माने तो तो एक जुर्म की सज़ा एक बार मिलना चाहिए, कांग्रेस 15 साल से दिग्विजय शासन काल की सज़ा भोग रही है। इस बार मध्यप्रदेश की जनता कांग्रेस को उबार देगी ? कमलनाथ तो क्या पूरी कांग्रेस अभी तक यह तय नहीं कर सकी है कि आसन्न विधानसभा में उनका सर्वमान्य नेता कौन होगा। अभी तो जितने नेता, सब चेहरे, सब की अभिलाषा मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री होने की। कमलनाथ ने जरुर पिछले दिनों कहीं एक साक्षात्कार में जो कहा है वह प्रदेश में कांग्रेस की मौजूदा हालत की सच्ची तस्वीर है कि “दिग्विजय कार्यकाल की सज़ा, जनता की नाराजगी के रूप में  कांग्रेस 15 साल से भोग रही है।” भारतीय जनता पार्टी भी इसी राग को पिछले 15 साल से अलाप रही है। दूसरा सवाल यह है कि 15 साल की बदहाली के आंकड़े कहाँ है ? क्या भाजपा को या कांग्रेस को इस पर श्वेत पत्र जैसा कोई दस्तावेज़ जारी नहीं करना चाहिए। कम से कम दिग्विजय सिंह को तो अब साफ़ बोलना चाहिए। इस सवाल का जवाब एक तुलनात्मक श्वेत पत्र ही है, जो इनके और उनके राज की हकीकत खोल सकता है। दोनों और की चुप्पी पिछले चुनावों की तरह इस चुनाव को भी नूराकुश्ती की ओर धकेलती मालूम होती है। प्रदेश के मतदाता के सामने तीसरा विकल्प होता तो नूराकुश्ती का जवाब इस बार मिल जाता।

कमलनाथ अपने को मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर मानते है और दिग्विजय सिंह के बारे में उनकी पेशनगोई है कि दिग्विजय सिंह तो चुनाव भी नहीं लड़ेंगे। ऐसा है तो कांग्रेस क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया के सहारे मध्यप्रदेश जीत सकेगी ? इसे मुगालते से ज्यादा कुछ और नहीं कहा जा सकता। जरूरत है टिकट बांटने से पूर्व कांग्रेस में  पुन: आत्म मंथन की और भाजपा को चाहिए वो एक तुलनात्मक श्वेत पत्र जारी करे। यह समय की मांग है। उम्मीद है, नूराकुश्ती छोड़ दोनों कुछ करेंगे।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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