आन्दोलन नहीं, यह तो अराजकता है | EDITORIAL by Rakesh Dubey

अब महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के संगठन मराठा क्रांति मोर्चा की ओर से शहरों में बुलाए गए बंद के दौरान जिस तरह हिंसा का प्रदर्शन किया गया, उससे यही पता चलता है कि आरक्षण के नाम पर अराजकता फैलाने का प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। ऐसा ही पहले राजस्थान में हुआ। अपनी मांग मनवाने का यह तरीका सभ्य नहीं कहा जा सकता।

आरक्षण मांग रहे मराठा नेता भली तरह यह जान रहे थे कि उनका आंदोलन हिंसक होता जा रहा है, लेकिन वे तब चेते, जब उनके समर्थकों की हिंसा बेकाबू हो गई। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि आरक्षण मांगने निकले मराठा क्रांति मोर्चा ने बंद की अपील वापस ले ली, क्योंकि जब तक उसने ऐसा किया, तब तक मुंबई के साथ-साथ अन्य शहरों में बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ और आगजनी हो चुकी थी। इससे लाखों लोग प्रभावित हुए और सरकारी एवं गैरसरकारी संपत्ति को क्षति भी पहुंची। रेल एवं सड़क मार्ग ठप कर वाहनों में तोड़फोड़ करना और पुलिस को निशाना बनाना अराजकता के अलावा और कुछ नहीं।

इस आंदोलन में जैसा उत्पात देखने को मिला, वैसा ही कुछ इसी तरह के अन्य आंदोलनों में भी पहले देखने को मिल चुका है। उस हिंसा को भला कौन भूल सकता है जो जाट, पाटीदार, गुर्जर और कापू समुदाय के आरक्षण आंदोलन के दौरान विभिन्न् राज्यों में देखने को मिली?  भले ही आरक्षण मांगने सड़कों पर उतरे संगठन अपनी गतिविधि को आंदोलन का नाम देते हों, लेकिन सच यह है कि इसके बहाने वे अराजकता फैलाकर सरकार पर अनुचित दबाव डालते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि अन्य राजनीतिक दल ऐसे आंदोलनों को हवा देते हैं।

जैसे-जैसे चुनाव करीब आते जाएंगे, आरक्षण एवं अन्य मांगों को लेकर सड़कों पर हिंसक तरीके से उतरने वाले संगठनों की संख्या बढ़ती जाएगी। इसमें संशय नहीं कि महाराष्ट्र में प्रभावशाली माने जाने वाले मराठा समुदाय को उकसाने का काम विभिन्न् राजनीतिक दल कर रहे हैं। पहले राजनीतिक दल वोटों के लालच में हर किसी की आरक्षण की मांग का समर्थन करने आगे आ जाते थे, लेकिन अब वे इसलिए भी आगे आ जाते हैं ताकि सत्तारूढ़ दल को मुश्किल में डाला जा सके। इसीलिए आरक्षण मांगने वाले हिंसा का सहारा लेने में संकोच नहीं करते।

आरक्षण मांग रहे समुदाय ही नहीं, उन्हें समर्थन देने वाले दल भी इस सच्चाई से भलीभांति परिचित हैं कि हर तबके को आरक्षण नहीं मिल सकता और आरक्षण उनकी सभी समस्याओं का समाधान नहीं, लेकिन वे इस सच को रेखांकित करने को तैयार नहीं। कई बार तो वे नियम-कानून और यहां तक कि अदालती आदेशों के खिलाफ जाकर भी आरक्षण की पैरवी करने लगते हैं। मराठा समुदाय एक तो आरक्षण के दायरे में आने की पात्रता नहीं रखता और फिर अदालती आदेश के तहत जब तक पिछड़ा वर्ग आयोग इस समुदाय की आर्थिक-सामाजिक स्थिति पर अपनी रपट नहीं दे देता, तब तक महाराष्ट्र सरकार चाहकर भी किसी फैसले पर नहीं पहुंच सकती। इसके बावजूद मराठा क्रांति मोर्चा जिद पर अड़ा है कि राज्य सरकार अध्यादेश के जरिए उनके समुदाय के लिए आरक्षण की घोषणा करे, वह भी 16 प्रतिशत। इसे क्या कहें ? जो आन्दोलन सभ्य तरीके से नही होते उन्हें अराजक आन्दोलन कहना उचित होगा, इससे समाज को बचाना होगा।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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