प्रदूषण : अब तो कुछ सोचिये | EDITORIAL

राकेश दुबे@प्रतिदिन। पिछले कुछ सालों से सरकार कहने लगी है कि पर्यावरण एक बड़ा मुद्दा है। जिसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। परन्तु उसकी चिंता सरकार को कितनी है इसकी पोल विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने खोल दी है दुनिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची जारी की है, जिनमें 14 शहर भारत के हैं। यानी प्रदूषण फैलाने में हम दुनिया का नेतृत्व कर रहे हैं। प्रदूषित शहरों की यह लिस्ट 2016 की है, जिसमें कानपुर पहले और दिल्ली छठे नंबर पर है।

यह कितना बड़ा मजाक है की यह सब समझते हुए भी नीति-निर्माण में पर्यावरण को प्राथमिकता आज भी नहीं दी जा सकी है। पर्यावरण से जुड़े प्रतिष्ठित संस्थानों के सुझाव सिर्फ फाइलों की शोभा बढ़ा रहे हैं। विकास के नाम पर बड़े उद्योगों को कहीं कुछ भी कर डालने की छूट दी गई हैं। परोक्ष रूप से उन्हें यह आश्वासन भी दिया जाता है कि पर्यावरण का मुद्दा उनके रास्ते में रुकावट नहीं बनेगा। आलम यह है कि इस मामले में अदालती आदेशों तक पर सियासत होती है। बीते साल दिवाली पर कोर्ट ने दिल्ली में पटाखे न जलाने का आदेश दिया, लेकिन एक राजनीतिक दल ने इसे हिंदू परंपरा में हस्तक्षेप के रूप में चित्रित किया। उसके इस रुख का असर यह पड़ा कि आम लोगों ने आदेश की धज्जियां उड़ाते हुए खूब पटाखे जलाए। 

भारतीय शहरों में प्रदूषण मुख्यत: औद्योगिक इकाइयों और वाहनों से होता है। औद्योगिक इकाइयां हर जगह नहीं हैं। दिल्ली और कुछेक महानगरों से उन्हें दूसरी जगह स्थानांतरित किया गया है। लेकिन इससे समस्या सुलझी नहीं, क्योंकि नई जगह पर भी प्रदूषण नियंत्रण उनके अजेंडे पर नहीं था। ज्यादातर इकाइयों में वायु प्रदूषणरोधी उपाय ही नहीं किए गए हैं। द्रव और ठोस कचरे के निस्तारण की बात उनकी सोच से भी परे है, लिहाजा कोई इसे जमीन के नीचे दबा देता है, कोई सीधे नदियों के हवाले कर देता है। रहा सवाल वाहनों का तो कुछ शहरों में पेट्रोल-डीजल के बजाय गैस के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया है। लेकिन इसके अपेक्षित नतीजे अभी आने बाकी हैं। महानगरों में सीएनजी पंपों पर लंबी-लंबी लाइनें लगी रहती हैं और अदालत के आदेशों के बावजूद पुरानी डीजल गाड़ियां सड़कों पर धुआं छोड़ती रहती हैं। पिछले साल सरकार ने घोषणा की थी कि 2030 से देश में बनने वाली सभी कारें केवल बैटरी से चलेंगी, लेकिन फिर उसने इस पर चुप्पी साध ली। रेलवे के विद्युतीकरण को लेकर भी सरकार के भीतर मतभेद हैं। पर्यावरण को लेकर यह टालू रवैया अब नहीं चलेगा। पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए परिवहन, ऊर्जा और नगर नियोजन नीतियों में एकरूपता और अमल में सख्ती जरूरी है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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