राकेश दुबे@प्रतिदिन। बीते गुरुवार यानि 22 मार्च को विश्व जल दिवस था। दुनिया में जल को लेकर बहुत सी बातें हुई। भारत को लेकर अब विश्व चिंतित हैं। आज भी भारत में 7.5 करोड़ लोग पीने के शुद्ध पानी से वंचित है। सबसे पहले कल के लिए जल। यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक भारत में भारी जल संकट आने वाला है। अनुमान है कि कल अर्थात आगामी 30 सालों में देश के जल संसाधनों में 40 प्रतिशत तक की कमी आएगी। देश की बढ़ती आबादी को ध्यान में रखें तो प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता बड़ी तेजी से घटेगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर भारत में स्थिति पहले से ही बेहद खराब है। अब देश के और हिस्से भी इस संकट की चपेट में आ जाएंगे। भारत में हालात इतने खराब हो गए हैं कि युद्धस्तरीय प्रयास के बिना कुछ हो ही नहीं सकता। जल संकट से निपटने को लेकर हमारे यहां जुबानी जमा खर्च ज्यादा होता है, ठोस प्रयास कम ही देखे जा रहे हैं। भारत में प्रति व्यक्ति के हिसाब से सालाना पानी की उपलब्धता तेजी से नीचे जा रही है। 2001 में यह 1820 घन मीटर था, जो 2011 में 1545 घन मीटर ही रह गया। 20125 में इसके घटकर 1341 घन मीटर और 2050 तक 1140 घन मीटर हो जाने की आशंका जताई गई है। आज भी करीब 705 करोड़ हिंदुस्तानी शुद्ध पेयजल से वंचित हैं। हर साल देश के कोई 1.4 लाख बच्चे गंदे पानी से होने वाली बीमारियों से मर जाते हैं। इस संकट की बड़ी वजह है भूमिगत जल का लगातार दोहन, जिसमें भारत दुनिया में अव्वल है। पानी की 80 प्रतिशत से ज्यादा जरूरत हम भूजल से पूरी करते हैं, लेकिन इसे दोबारा भरने की बात नहीं सोचते।
कहने को जल संचय भारत की पुरानी परंपरा रही है, मन्दिर के साथ जल संचय की परम्परा थी जो अब समाप्त हो गई है। बारिश का पानी बचाने के कई तरीके लोगों ने विकसित किए थे। दक्षिण में मंदिरों के पास तालाब बनवाने का रिवाज था। पश्चिमी भारत में इसके लिए बावड़ियों की और पूरब में आहार-पानी की व्यवस्था थी। समय बीतने के साथ ऐसे प्रयास कमजोर पड़ते गए। बावड़ियों की कोई देखरेख नहीं होती और तालाबों पर कब्जे हो गए हैं। संकट का दूसरा पहलू यह है कि भूमिगत जल लगातार प्रदूषित होता जा रहा है। औद्योगिक इलाकों में घुलनशील कचरा जमीन में डाल दिया जाता है। हाल में गांव-गांव में जिस तरह के शौचालय बन रहे हैं, उनसे गड्ढों में मल जमा हो रहा है, जिसमें मौजूद बैक्टीरिया भूजल में पहुंच रहे हैं। जल संकट लाइलाज नहीं है। हाल में पैराग्वे जैसे छोटे, गरीब देश ने सफलता पूर्वक इसका इलाज कर लिया है। दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन शहर ने इस संकट से निपटने के रास्ते खोजे हैं। हमारे लिए भी यह असंभव नहीं है, बशर्ते सरकार और समाज दोनों मिलकर इसके लिए प्रयास करें। समाज शोर मचाता है, सरकार सोती रहती है। जागिये, कल के लिए जल के निमित्त आज से ही कुछ कीजिये।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।