
कोई तीस-चालीस साल पहले तक बाजारों की पटरियों पर ग्रीटिंग्स कार्ड उसी तरह से बिका करते थे, जिस तरह से इन दिनों मोबाइल के कवर्स बिका करते हैं या कपड़े बिका करते हैं। जन्म दिवस, पितृ दिवस, मातृ दिवस, मित्र दिवस, हैप्पी मैरिज एन्नीवर्सरी, राखी कार्ड और न जाने कौन-कौन से कार्ड मिला करते थे। नये बरस का स्वागत करने वाले नई-नई डिजाइन के कार्ड छपा करते और थोक में बिका करते। कुछ सस्ते होते तो कुछ महंगे होते थे। कार्ड के साथ लिफाफे मिलते, लिफाफों पर मित्रों के पते लिख कर और डाक टिकट चिपका, जगह-जगह लगे लेटर बॉक्स में डालने का आनन्द अब तिरोहित हो गया है। किसी के संदेश की प्रतीक्षा जैसी उत्कंठा भी नहीं रही। अब एक छोटी सी “टिंग” में सब सिमट गया है। आप अपने को अति आधुनिक मान लेते हैं, पर बताइए ! कल जैसा आनन्द मुझे मिला आपको भी आया क्या ?
कनेक्टिविटी के आधुनिक युग और तकनीक ने सब कुछ बदल दिया है व्हाट्सएप, मैसेज और फेसबुक आदि ने कार्ड कल्चर को आउट कर दिया है। हर बात पर 'हैप्पी हैप्पी' तो होने लगा। ग्रीटिंग्स और शुभकामनाओं का आदान-प्रदान तो बढ़ा लेकिन 'दस्तखतों' वाले संदेश गायब हो गए हैं। अब हम लिखे को न छू सकते हैं, न सूंघ सकते हैं, न अक्षरों पर हाथ फिरा कर उनको महसूस कर सकते हैं। वे एकदम सपाट और पास होकर भी दूर ही रहते हैं। मुझे भी कुछ कार्डो पर लिखना है, लिफाफे पर पता लिख कर प्यार से गोंद लगाकर चिपकाना है, फिर लुप्त हो रहे पोस्ट आफिस के डिब्बे में डालना है। नया साल मंगलमय हो, आप भी किसी को अपने हस्ताक्षरित संदेश भेजें, इसी शुभकामना के साथ। 2017 का अंतिम प्रतिदिन।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।