
'साइंस अडवांसेज' नामक पत्रिका में प्रकाशित एक शोध में कहा गया है कि धरती के सबसे ज्यादा आबादी वाले इलाकों में रातें खत्म होती जा रही हैं। मतलब यह कि रात तो हो रही है लेकिन अंधेरे में कमी आई है, कालिमा घट रही है। इसका कारण है मानव निर्मित रोशनी में हो रही बढ़ोतरी। इसका इंसान की सेहत और पर्यावरण पर खतरनाक असर पड़ सकता है। जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंसेज के क्रिस्टोफर काएबा और उनकी टीम ने सैटलाइट की मदद से रात के वक्त धरती पर बल्ब, ट्यूबलाइट जैसी चीजों से विभिन्न इलाकों में होने वाली रोशनी को मापा और पाया कि धरती के एक बड़े हिस्से में रात के समय कुछ ज्यादा रोशनी रहने लगी है। रात के वक्त जगमगाने वाले इलाके २०१२ से२०१६ के बीच २.२ प्रतिशत की दर से बढ़े हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार खासकर मध्य पूर्वी देशों और एशिया में रात के समय रोशनी ज्यादा रहने लगी है।
भारत में एलईडी बल्ब की बढ़ती बिक्री से रात में रोशनी बढ़ गई है। सच्चाई यह है कि नई जीवनशैली में दिन और रात का कुदरती बंटवारा कमजोर पड़ गया है। अब लोग देर रात तक काम करते रहते हैं या मनोरंजन में लगे रहते हैं, खासकर युवा पीढ़ी। महानगरों में तो यह चलन ही बन गया है। जल्दी सोने और जल्दी जागने के सिद्धांत को ताक पर रख दिया गया है। यह बात अब बड़े गर्व से कही जाती है कि अमुक शहर में तो रात ही नहीं होती। लेकिन अब वैज्ञानिक याद दिला रहे हैं कि रात और दिन का बंटवारा यूं ही नहीं है बल्कि इसके पीछे प्रकृति का एक निश्चित प्रयोजन है।
कई प्राकृतिक क्रियाएं रात में ही संपन्न होती हैं। हमारे शरीर और मन को पर्याप्त आराम चाहिए। दिन भर की थकान के बाद रात हमारे लिए सुकून लेकर आती है। अगर रात में गहरी नींद सोएं और कोई मीठा सपना आ जाए तो फिर क्या कहने! अच्छी नींद सोकर उठने के बाद इंसान खुद को तरोताजा महसूस करता है। तब काम में उत्साह महसूस होता है। अच्छी नींद अच्छी सेहत लाती है। लेकिन आज रात-दिन का संतुलन गड़बड़ाने से डिप्रेशन, चिड़चिड़ापन, ब्लड प्रेशर, डायबीटीज जैसी बीमारियां परेशान करने लगी हैं। मानसिक रूप से परेशान लोगों के आपसी संबंधों में तनाव आ रहा है। रोशनी का आविष्कार इसलिए नहीं किया गया कि रात का वजूद ही खत्म हो जाए। हमें और हमारे साथ रह रहे तमाम जीव-जंतुओं और वनस्पतियों को अंधेरा भी चाहिए। इसलिए हमें रात दिन का संतुलन बनाए रखना होगा। रात में चांद-तारों की झिलमिल रोशनी ही अच्छी है। प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ कर हमे बहुत कुछ ज्यादा मिलने वाला भी नहीं है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।