
26 नवम्बर 1949 को भारत की संसद में संविधान सभा के अध्यक्ष डाॅ0 राजेन्द्र प्रसाद ने, डाॅ0 अंबेडकर की प्रशंसा करते हुए कहा था- उन्हें प्रारूप समिति में रखने और इसका अध्यक्ष बनाने से बेहतर और सही फ़ैसला हो ही नहीं सकता था। उन्होंने न केवल अपने चयन के साथ न्याय किया है, बल्कि उसे आलोकित भी किया है।
और डाॅ0 अंबेडकर ने संविधान प्रस्ताव पेश करते समय अपने समापन भाषण में क्या कहा था? उन्हीं के शब्दों मेंः- मुझे बहुत आश्चर्य हुआ था जब प्रारूप समिति ने मुझे अपना अध्यक्ष चुना। समिति में मुझसे बड़े, मुझसे बेहतर, मुझसे अधिक सक्षम लोग थे।
बात बहुत छोटी है लेकिन असर आज तक करती है। यदि डाॅ0 अंबेडकर की जगह कोई ऐसा व्यक्ति होता जिसका दिमाग शोर मचाता है तो आज आपका और हमारा भारत ऐसा नहीं होता जैसा कि दिखाई दे रहा है। यदि तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, डाॅ0 अंबेडकर को काम करने की स्वंत्रता ना देते और सारे फैसले अपने कैबिन में करते तो क्या आपको एक ऐसा संविधान मिल पाता जो आपको अधिकार देता है कि आप सरकार की आखों में आखें डालकर सवाल कर सकें। दुनिया के बहुत से देशों के नागरिक ऐसे संविधान के लिए आज भी तरस रहे हैं।