राकेश दुबे@प्रतिदिन। उपभोक्ताओं की कॉल ड्रॉप की लगातार आती शिकायतों पर पर गौर कर भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने एक बार फिर कड़ा रुख अपनाया है। उसने हाल ही में जारी अपने नए दिशानिर्देशों में कॉल ड्रॉप के लिए 1 से 5 लाख रुपये तक के वित्तीय जुर्माने का प्रस्ताव किया है। यह ग्रेडेड जुर्माना प्रणाली है, जो किसी नेटवर्क के प्रदर्शन पर निर्भर करेगी। यदि कोई ऑपरेटर लगातार 3 तिमाहियों में कॉल ड्रॉप के लिए तय मानकों पर खरा नहीं उतरता है, तो उस पर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा। इसके अलावा कॉल ड्रॉप को मापने की विधि में भी थोड़ा बदलाव किया गया है। अब नेटवर्क के भौगोलिक फैलाव को भी देखा जाएगा। सामान्य स्थिति में दो कॉल प्रतिशत ड्रॉप को छूट दी जाएगी तो व्यस्त समय में तीन तक की भी छूट दी जाएगी।
कॉल ड्राप की समस्या ग्राहकों के लिए लगातार सिरदर्द बनी हुई है। कॉल बीच में कटने के अलावा कॉल कनेक्ट न होने की शिकायतें भी आ रही हैं। बीते साल सरकार के कठोर रवैये के बाद मोबाइल कंपनियों ने सेवाओं में कुछ सुधार किया था। सचाई यह है कि नेटवर्क कंपनियां वर्चस्व की लड़ाई में कॉल ड्रॉप की समस्या का समाधान करने की ओर ध्यान नहीं दे रही हैं। इससे पहले जब ट्राई ने कॉल ड्रॉप को लेकर कड़ाई बरती थी तो मोबाइल सेवा देने वाली कंपनियों ने रेडियो लिंक टाइम आउट तकनीक (आरएलटी) के जरिए गोरखधंधा शुरू कर दिया था। इस तकनीक के प्रयोग से फोन से की जाने वाली कॉल प्रत्यक्ष रूप से तो नहीं कटती, लेकिन तकनीकी रूप से कट चुकी होती है। अब ट्राई ने आरएलटी के प्रयोग के भी नए मानक बनाए हैं।
अब आप कॉल की गुणवत्ता मालूम क्र सकते हैं, इसे जानने के लिए ट्राई एक ऐप भी जारी कर चुकी है, जिससे उसे कॉल ड्रॉप होने पर सीधे रिपोर्ट भेजी जा सकती है। सवाल उठता है कि क्या इन चीजों से कॉल ड्रॉप की समस्या से निजात मिलेगी? पहले टेलिकाम कंपनियां कॉल ड्रॉप के लिए स्पेक्ट्रम व टावरों की कमी का बहाना बनाती थीं जिस पर सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में स्पेक्ट्रम की नीलामी की थी। हालांकि उसे लेकर कंपनियां संतुष्ट नहीं हैं। उनका यह भी कहना है कि नई जगहों पर टावर नहीं बनाने दिए जा रहे। उनकी शिकायतें सुलझाई जाएं, लेकिन ग्राहकों को हर हाल में बेहतर सेवा चाहिए। देखना यह है कि इस बार ट्राई अपने मकसद में कामयाब हो पाता है या नहीं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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