करवा चौथ के कठिन निराहार निर्जला व्रत में मुहूर्त और विधि का भी बड़ा महत्व है। यदि सही मुहूर्त टाइम पर निर्धारित विधि के अनुसार पूजा पाठ नहीं किया। कथा का वाचन और श्रवण नहीं किया, तो व्रत का अभीष्ट कम हो जाता है। आपकी सुविधा के लिए हम पंचांग के अनुसार मुहूर्त टाइम, पूजा सामग्री की लिस्ट और पूजा की विधि, मंत्र एवं मार्गदर्शन प्रकाशित कर रहे हैं।
1. करवा चौथ की तिथि व मुहूर्त (2025 के लिए)
करवा चौथ 2025 को 10 अक्टूबर, शुक्रवार को मनाया जाएगा।
- चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 09 अक्टूबर की रात 10:54 बजे से
- चतुर्थी तिथि समाप्त: 10 अक्टूबर की शाम 07:38 बजे तक
- व्रत समय (उपवास अवधि): सूर्योदय से चंद्रमा के उदय तक:
सुबह लगभग 06:19 बजे से लेकर शाम 08:13 बजे तक। आपके शहर में इस समय में थोड़ा सा परिवर्तन हो सकता है। कृपया सूर्योदय और चंद्रमा की उदय का समय देखें।
पूजा (संध्यायाम) मुहूर्त:
05:57 बजे शाम से लेकर 07:11 बजे तक। (ड्रिक पंचांग के अनुसार)
अन्य स्रोतों के अनुसार: 06:08 से 07:20 के बीच।
दिल्ली के लिए विशेष मुहूर्त: 17:57:25 से 19:07:18 तक।
2. विशेष योग / शुभ समय
करवा चौथ पर निम्न विशेष यौग्य एवं शुभ योग माने जाते हैं, जो व्रत की सफलता व पूजा की शक्ति बढ़ाते हैं:
सर्वार्थसिद्धि योग
अमृतसिद्धि योग
द्विपुष्कर, त्रिपुष्कर योग
रवि पुष्य, गुरु पुष्य, रवि योग आदि कुछ पंचांगों में उल्लेखित हैं।
3. पूजा की सामग्री की सूची
पारंपरिक रूप से निम्न सामग्री एक पूजा थाली / करवा चौथ के लिए तैयार की जाती है:
- करवा (मिट्टी या धातु की जल पात्र)
- सिंदूर, रोली / चंदन
- फूल (गुलाब, मोगरा आदि)
- अक्षत (चावल)
- दीपक (दीया), मोमबत्ती
- मिठाई, फल
- जल (स्वच्छ पानी)
- नारियल
- गौरी / पार्वती एवं श्री गणेश की मूर्ति / चित्र / थाली
- साज-श्रृंगार (श्रृंगार सामग्री जैसे आभूषण, मँगनी, मेहँदी इत्यादि)
- कथापुस्तक / व्रत कथा
- छन्नी / झरना / छलनी (चंद्र दर्शन हेतु)
- मूली – हल्दी, कपूर (यदि परंपरा अनुसार)
- पान / सुपारी इत्यादि
4. पूजा विधि एवं क्रम: संक्षिप्त रूप
नीचे एक क्रमबद्ध विधि दी जा रही है, जिसे आप शाम के समय पालन कर सकती हैं:
स्नान एवं शुद्धि
शाम को समय से पहले स्नान करें एवं स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
संकल्प (व्रत ग्रहण)
थाली समक्ष बैठकर, मन में संकल्प लें, “मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतम् अहम् करिष्ये।”
पूजा प्रारंभ
– भगवान गणेश को प्रणाम करें
– माता पार्वती / चतुर्थी माता की पूजा करें
– करवा को जल या दूध से पूरित करें और अक्षत, फूल, सिंदूर आदि अर्पित करें
– कथा वाचन / सुनना (व्रत कथा सुनें)
– अन्य पूजा मंत्रों का उच्चारण
चंद्र दर्शन एवं अर्घ्य
– जैसे ही चंद्रमा उदय हो (चाँद दिखे) - उसे छलनी/झरने के माध्यम से देखें
– जल अर्पित करें (अर्घ्य दें)
– उसके पश्चात पति को जल दें / फलों से उपवास तोड़ने के लिए कहें
व्रत पारण
– पति द्वारा या स्वयं फल / जल से व्रत खोलें
– भोजन ग्रहण करें
5. कुछ महत्वपूर्ण मंत्र
नीचे कुछ लोकप्रिय एवं उपयोगी मंत्र दिए गए हैं, जिन्हें पूजा के समय बुलाया जाता है:
संकल्प मंत्र
“मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतम् अहम् करिष्ये।”
मां पार्वती / चतुर्थी माता स्तुति मंत्र
“नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥”
चंद्र प्रार्थना
“चन्द्र देव करुणामय, मेरी सुनो पुकार। पति की आयु बढ़ाओ, करो सदा कल्याण।”
करवा दान मंत्र
“करकं क्षीरसम्पूर्णा तोयपूर्णमथापि वा। ददामि रत्नसंयुक्तं चिरञ्जीवतु मे पतिः॥”
शिव / पार्वती स्तुति
“ॐ नमः शिवाय सदा शिवाय करवा चौथ माता की जय, पति की दीर्घायु और सुख समृद्धि के लिए यह व्रत रख रही हूँ।”
सुझाव एवं सावधानियाँ
चंद्र दर्शन करने से पहले पूजा समाप्त होनी चाहिए, अन्यथा व्रत अधूरा माना जाता है।
यदि आकाश में चाँद दिखाई न दे, तो पंचांग या पंडित बताए समय पर पूजा करना चाहिए।
जल से व्रत न तोडें - पहले चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए।
पूजा के समय शुद्ध मन और श्रद्धा होनी चाहिए।
निराहार-निर्जला व्रत किया जाता है - दिन भर भोजन, जल दोनों से परहेज़।
प्रस्तुति: आचार्य कमलांशु (ज्योतिष विशेषज्ञ)।