VAR LAXMI VRAT KATHA 2025: स्कंद पुराण के अनुसार वरदलक्ष्मी व्रत की कथा, शुभ मुहूर्त टाइम, पूजा विधि

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वरलक्ष्मी व्रत या वरदलक्ष्मी व्रत मूल रूप से दक्षिण भारत (कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना) की परंपरा में है। अब पूरे भारत में भक्ति भाव के साथ वर लक्ष्मी का व्रत किया जाता है। स्कंद पुराण में इसका उल्लेख मिलता है। भगवान शिव ने माता पार्वती के समक्ष इस व्रत को प्रकट किया था। जो स्कंद पुराण के शिव खंड में "वरलक्ष्मी व्रत महात्म्य" अध्याय के रूप में मिलता है। इस व्रत का मूल उद्देश्य अष्ट लक्ष्मी को प्रसन्न करना और उनसे वरदान प्राप्त करना है। 

स्कन्द पुराण: प्रथम श्लोक, व्रत के प्रारंभ की सूचना

तदुक्तं स्कान्दे पार्वतीं प्रति ईश्वरः –
शुक्ले श्रावणिके मासि पूर्णिमोपान्त्यभार्गवे।
नूतनैस्तण्डुलैः पूर्णे कुम्भे चावाह्य पद्मजाम्॥
चातुर्मास में सृष्टि के संचालक भगवान शिव ने माता पार्वती को बताया कि, उनके सबसे प्रिय श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की भद्रा तिथि (पूर्णिमापूर्व) को नूतन चावल से भरे कलश (कुम्भ) में पद्मराज (कमलवर) स्थापित कर व्रत करना चाहिए। 
यहां नूतन चावल से तात्पर्य है नई फसल के चावल एवं पद्मराज का अभिप्राय है गुलाबी या लाल कमल। 

स्कंद पुराण: द्वितीय श्लोक व्रत की विधि 

स्त्रियः प्रसन्नहृदया निर्मलाश्चित्तवाससः।
सायं चारुमतीमुख्याश्चक्रुः पूजां प्रयत्नतः॥
चारुमती जैसे धर्मनिष्ठ महिलाएँ, साफ‑सुथरी वेशभूषा में, प्रसन्न मन और निर्मल चित्त से शाम के समय प्रयत्न पूर्वक पूजा करती हैं। 

स्कंद पुराण: तृतीय श्लोक कार्य सिद्धि की विधि

धारयेद्दक्षिणे हस्ते नवसूत्रं सुगन्धिकम्।
सिद्ध्यन्ति सर्वकार्याणि वरलक्ष्मीप्रसादतः॥ 
दक्षिण हाथ में नव वस्त्रों से बने सुगन्धित सूत्र धारण करें, इससे वरलक्ष्मी की कृपा से सभी कार्य सिद्ध होते हैं। 

वर्ष में एक बार अष्ट लक्ष्मी प्रकट होती हैं

स्कंद पुराण में बताया गया है कि वरलक्ष्मी व्रत के दिन मां लक्ष्मी, अष्टलक्ष्मी के रूप में प्रकट होती हैं। ये अष्टलक्ष्मी आठ प्रकार की शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं:
  1. श्री लक्ष्मी: धन और समृद्धि
  2. भू लक्ष्मी: पृथ्वी और भूमि
  3. सरस्वती लक्ष्मी: ज्ञान और विद्या
  4. प्रीति लक्ष्मी: प्रेम और सद्भावना
  5. कीर्ति लक्ष्मी: यश और प्रसिद्धि
  6. शांति लक्ष्मी: शांति और धैर्य
  7. तुष्टि लक्ष्मी: सुख और संतुष्टि
  8. पुष्टि लक्ष्मी: शक्ति और स्वास्थ्य

वरलक्ष्मी व्रत कथा 

मगध देश में कुंडी (पुंडरीकपुर) नाम का एक बड़ा ही सुंदर नगर था। इसी नगर में चारुमति नाम की एक पवित्र और पतिव्रता ब्राह्मण स्त्री रहती थी। वह प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्यकर्म स्नान आदि करके भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करती। सास-ससुर और पति के प्रति अपने धर्म का पालन करती। उसके द्वारा से कोई भी याचक निराश नहीं जाता था। वह नित्य देव मंदिरों में दर्शन करने को जाती थी। इस प्रकार अपने जीवन में अनुशासन एवं धर्म का पालन करती और अन्य महिलाओं को भी इसके लिए प्रेरित करती थी। 

इस प्रकार की महिलाओं के प्रति विशेष अनुराग रखने वाली माता लक्ष्मी, उनके जीवन में कभी कोई संकट और कष्ट नहीं आने देती, उनके भंडार भरे रहते हैं और धन-धान्य की कोई नहीं होती। चारुमति के आचरण से प्रभावित होकर माता लक्ष्मी स्वयं प्रकट हुई और कहा कि श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि के पूर्व आने वाले शुक्रवार को पृथ्वी पर अष्ट लक्ष्मी प्रकट होती है। तुम श्रद्धापूर्वक विधि विधान से उनकी पूजा करो। तुम्हारे साथ तुम्हारे सामान चरित्र वाली जितनी भी महिलाएं वर लक्ष्मी की पूजा करेंगी उन सभी को धन, धान्य, संतान, विद्या, धैर्य, विजय, और सौभाग्य प्राप्त होगा। चारुमति ने माता लक्ष्मी को प्रणाम किया और माता लक्ष्मी अंतर्ध्यान हो गई। 

चारुमति ने अपने परिवार को सब कुछ बताया। पूरे परिवार ने चारुमति को वर लक्ष्मी का व्रत एवं विधिपूर्वक पूजा करने के लिए प्रोत्साहित किया। चारुमति के समान जीवन में अनुशासन और धर्म का पालन करने वाली सभी महिलाओं ने माता लक्ष्मी के निर्देशानुसार समूह बनाकर वर लक्ष्मी का व्रत किया और अष्ट लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए विधिपूर्वक पूजा की। फल स्वरुप अगले व्रत से पूर्व सभी महिलाओं की मनोकामना पूर्ण हुई। किसी को धन-धान्य, किसी को संतान, इस प्रकार अष्ट लक्ष्मी से जिसे जो प्रार्थना की, उसकी वह मनोकामना पूर्ण हुई। 

जो भी महिला चारुमति के समान आचरण और धर्म का पालन करती है एवं वरलक्ष्मी का व्रत करती है। अष्ट लक्ष्मी की कृपा से उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। उसके सभी कष्ट, नष्ट हो जाते हैं। जीवन में सदैव सुख-समृद्धि और वैभव बना रहता है। © उपदेश अवस्थी
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