यदि कोई ऐसा सरकारी कर्मचारी, जिसकी नौकरी के लिए उसे फिजिकल फिट रहना अनिवार्य है, और किसी कारण से शासकीय सेवा के दौरान वह दिव्यांग हो जाता है, पूर्व के अनुसार शासकीय सेवा के लिए सक्षम नहीं रहता तो क्या उसे अयोग्य घोषित करके, उसकी सेवा समाप्त या फिर उसे सेवानिवृत्त किया जा सकता है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में महत्वपूर्ण न्याय दृष्टांत दिया है।
विभाग ने बीमार कर्मचारी की सेवा समाप्त कर दी थी
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस अरविंद कुमार की खंडपीठ ने आंध्र प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के एक ड्राइवर के मामले में हाई कोर्ट के डिसीजन को पलट दिया है। अपनी नियमित सेवा के दौरान ड्राइवर कलर ब्लाइंडनेस का शिकार हो गया था। इसके चलते वह वाहन चालक के पद पर काम करने के लिए सक्षम नहीं था। आंध्र प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम ने उसको सेवा के लिए अयोग्य घोषित करते हुए, उसकी सेवा समाप्त कर दी थी। ड्राइवर ने आंध्र प्रदेश के हाईकोर्ट में सड़क परिवहन निगम के फैसले को चुनौती दी परंतु हाईकोर्ट ने सड़क परिवहन निगम के फैसले को सही बताया।
दिव्यांग कर्मचारी न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट तक लड़ा
ड्राइवर ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। विद्वान न्यायाधीशों ने सभी पक्षों के तर्क सुनने के बाद कहा कि, सेवा के दौरान दिव्यांग हुए व्यक्ति को उचित और न्यायसंगत पुनर्नियोजन (Redeployment) का अधिकार है। यह केवल प्रशासनिक उदारता का विषय नहीं है बल्कि नियोक्ता की संवैधानिक और विधिक बाध्यता भी है जो गैर भेदभाव, गरिमा और समानता के सिद्धांत पर आधारित है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी विशेष पद के लिए मेडिकल अनफिट होने का मतलब शासकीय सेवा के लिए अनफिट हो जाना नहीं है। शासन को यह देखना होगा कि उसे किसी ऐसे पद पर स्थानांतरित कर दिया जाए जहां वह अपनी दिव्यांगता के साथ शासन की सेवा कर सके।