MPPSC ADR SCAM - ASC हेतु आरक्षित पदों पर इंजीनियरिंग वालों का चयन कर लिया, पूरी प्रक्रिया हाई कोर्ट के निर्णयाधीन

किसी भी प्रकार के पॉलिटिकल और डिपार्टमेंटल प्रेशर के बिना मध्य प्रदेश में प्रशासनिक अधिकारियों की भर्ती प्रक्रिया को पूरा करने के लिए मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग इंदौर का गठन किया गया परंतु MPPSC के सिस्टम में इतने सुराख हैं, किसी भी डिपार्टमेंट के अधिकारी कभी भी गड़बड़ी कर जाते हैं। मध्य प्रदेश शासन की ड्यूटी एवं ग्रामोद्योग विभाग में असिस्टेंट डायरेक्टर के पद के लिए जिस चयन परीक्षा का आयोजन किया गया था उसमें भी घोटाला सामने आ गया है। विज्ञापन में आर्ट, साइंस, कॉमर्स की डिग्री मांगी गई थी परंतु सिलेक्शन लिस्ट में इंजीनियरिंग वालों के नाम लिखे हुए हैं। 

MPPSC SCAM - Assistant Director पद के लिए निर्धारित योग्यता क्या थी

MPPSC ने 3 अगस्त 2023 को जारी विज्ञापन में Assistant Director के पदों के लिए किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से Arts/Science/Commerce में स्नातक डिग्री और सहकारिता से संबंधित दो वर्ष का अनुभव अनिवार्य किया था। इसके आधार पर प्रतियोगी परीक्षा आयोजित कर 4 जून 2025 को Selection List जारी की गई। इस सूची में B.E. और B.Tech. डिग्रीधारियों को भी शामिल किया गया, जो याचिकाकर्ता रवि मौर्य के अनुसार नियमों के खिलाफ है। 

MPPSC द्वारा जारी सिलेक्शन लिस्ट को हाई कोर्ट में चुनौती

याचिकाकर्ता ने High Court में याचिका क्रमांक 21190/2025 दायर कर Selection List की संवैधानिकता को चुनौती दी। Justice M.S. Bhatti की खंडपीठ में प्रारंभिक सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता Rameshwar Singh Thakur और Hitendra Kumar Gohilani ने तर्क दिया कि Madhya Pradesh Handloom and Handicrafts Directorate (Gazetted) Service Recruitment Rules, 2014 के नियम 8 की अनुसूची 3 में केवल Arts/Science/Commerce में स्नातक डिग्री को ही योग्यता माना गया है। 

इंजीनियरिंग वालों के लिए अलग से आवेदन मांगे गए थे

उन्होंने यह भी बताया कि B.E. और B.Tech. डिग्रीधारियों के लिए Assistant Director Rural Industries (Technical) का अलग पद है, जिसके लिए MPPSC ने अलग विज्ञापन जारी किया था। इस पद के लिए केवल B.E./B.Tech. डिग्रीधारियों से आवेदन मांगे गए थे, और Arts/Science/Commerce स्नातकों को इसमें अवसर नहीं दिया गया। इसके बावजूद, MPPSC की Selection List में छह अभ्यर्थियों में से दो B.E./B.Tech. डिग्रीधारी हैं, और प्रतीक्षा सूची में भी ऐसे अभ्यर्थी शामिल हैं। इस कारण याचिकाकर्ता का चयन नहीं हो सका। 

हाई कोर्ट में चार सप्ताह में जवाब मांगा

High Court ने मामले की गंभीरता को देखते हुए MPPSC, मध्य प्रदेश शासन, और चयनित अभ्यर्थियों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है। साथ ही, पूरी Recruitment Process को याचिका के अंतिम निर्णय तक स्थगित कर दिया गया है। अगली सुनवाई 21 जुलाई 2025 को निर्धारित की गई है। याचिकाकर्ता की और से  वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर एवं हितेंद्र कुमार गोहलानी ने पक्ष प्रस्तुत किया। यह उन अभ्यर्थियों के लिए भी चर्चा का विषय है जो Government Jobs in Madhya Pradesh की तैयारी कर रहे हैं। 

घोटाला कैसे हुआ 

दरअसल, मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग इंदौर में घोटाले के लिए सिस्टम बनाया गया है। किस पद के लिए क्या योग्यता निर्धारित करनी है यह काम डिपार्टमेंट का होता है जबकि विज्ञापन एमपीपीएससी द्वारा जारी किया जाता है। रूल बुक में कहीं कोई डिस्क्लेमर नहीं होता। इस मामले में एमपीपीएससी के प्रवक्ता श्री रविंद्र पंचभाई ने भोपाल समाचार डॉट कॉम को बताया कि, परीक्षा पूरी होने के बाद प्रश्न और उत्तर की जांच करने का काम लोक सेवा आयोग द्वारा किया जाता है परंतु उम्मीदवार की योग्यता की जांच करने का काम डिपार्टमेंट के अधिकारी, एमपीपीएससी के ऑफिस में आकर करते हैं। डिपार्टमेंट के अधिकारी जो भी फाइनल करते हैं, वहीं अंतिम होता है। एमपीपीएससी उसमें कोई इंटरफेयर नहीं करता। 

इस प्रकार घोटाले के लिए डिपार्टमेंट जिम्मेदार है जबकि चयन सूची एमपीपीएससी द्वारा जारी की गई है और उसमें कोई डिस्क्लेमर नहीं है। यानी दुनिया में किसी को पता ही नहीं है कि एमपीपीएससी के ऑफिस में कौन क्या कर जाता है। सिस्टम बना हुआ है इसलिए एमपीपीएससी को भी नहीं पता के उनके ऑफिस में, उनके नाम से आयोजित होने वाली परीक्षा और चयन सूची में, किसने क्या गड़बड़ कर दी।

घोटाला पकड़ा जाता है तो फिर कार्रवाई क्यों नहीं होती 

इस प्रकार के कई घोटाले पहले भी पकड़े जा चुके हैं परंतु सबका खुलासा हाईकोर्ट में होता है, जहां एक उम्मीदवार अपनी नौकरी प्राप्त करने के लिए पार्टी बनता है। उसे उसकी नौकरी मिल जाती है। उसके हिसाब से न्याय हो जाता है। उम्मीदवार घोटाला करने वाले को सादर देने की मांग नहीं करता इसलिए कोर्ट भी घोटालेबाज को सजा नहीं दे पाता। एमपीपीएससी के चेयरमैन सिस्टम को सुधार नहीं सकते क्योंकि ज्यादातर चेयरमैन कृपा पूर्ण नियुक्ति पर होते हैं। मंत्री और अधिकारी तो चाहते ही नहीं है। यदि वह ईमानदार होते तो एमपीपीएससी जैसी संस्थाओं का गठन ही क्यों होता है।

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