श्री गणेश चतुर्थी की शास्त्रोक्त कथा, जिसका वाचन देवता भी करते हैं - shri Ganesh janm Katha

माता पार्वती ने ब्रह्मांड की संचालक सर्वव्यापी शक्ति को पुत्र के रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तप किया। जब उनका यज्ञ पूर्ण हुआ तब वह सर्वव्यापी शक्ति एक साधु का रूप धारण करके माता पार्वती के सम्मुख पहुंची। द्वार पर अतिथि जानकर माता पार्वती ने उन की विभिन्न विधियों से सेवा की ताकि वह संतुष्ट हो जाएं। अति प्रसन्न होकर उन्होंने वरदान देते हुए कहा कि, हे मां जिस पुत्र के लिए तूने यह कठिन व्रत किया है। वह पुत्र तुझे अभी बिना गर्भधारण के प्राप्त होगा। व समस्त गणों का नायक होगा और इस पृथ्वी पर प्रथम पूज्य होगा। इतना कहकर साधु के रूप में प्रकट हुई सर्वव्यापी शक्ति अंतर्ध्यान हो गई और यज्ञ स्थल पर रखे हुए पलना में एक बालक प्रकट हो गया। 

बालक के प्रकट होने पर भगवान शिव और माता पार्वती ने भव्य जन्मोत्सव का आयोजन किया। सभी प्रकार के दान दिए गए। तीनों लोक से साधु संत, असुर और मुनि एवं देवता इत्यादि बालक के दर्शन के लिए आने लगे। चारों ओर मंगल ही मंगल था। भगवान शिव के बुलावे पर शनिदेव की जन्मोत्सव में कैलाश पहुंचे, लेकिन अपनी प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए बालक के दर्शन करने से संकोच करने लगे। यह देखकर माता पार्वती ने विशेष आग्रह किया। जैसे ही शनि देव की दृष्टि बालक पर पड़ी, बालक का सिर गायब हो गया और अंतरिक्ष में अपनी कक्षा में जाकर स्थापित हो गया। इसी के साथ पूरे कैलाश में हाहाकार मच गया। कहा जाने लगा कि शनिदेव ने माता पार्वती के पुत्र का नाश कर दिया है। यह देखकर वहां पर उपस्थित भगवान श्री हरि विष्णु तुरंत अपने गरुड पर सवार होकर चले और सबसे पहले 1 गज के बालक का सिर लेकर आ गए। उन्होंने पल्ला पर बालक के धड़ के ऊपर वह सिर रखा। भगवान शिव ने प्राण मंत्र पढ़ा। इस प्रकार बालक फिर से जीवित उठा। तब भगवान शिव ने बालक का नाम गणेश रखा। 

एक बार भगवान शिव ने बुद्धि की परीक्षा का आयोजन किया। गणेश और कार्तिकेय परीक्षार्थी थे। भगवान शिव ने कहा कि जो भी इस पृथ्वी की प्रदक्षिणा करके कैलाश पर वापस लौटेगा वही विजेता घोषित किया जाएगा। भगवान कार्तिकेय तुरंत अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी की प्रदक्षिणा के लिए निकल गए। भगवान श्री गणेश ने अपनी बुद्धि से उपाय निकाला। वह अपने मूषक पर सवार हुए और माता-पिता के चरणों की सात प्रदक्षिणा कर ली। इस प्रकार बुद्धि की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद भगवान शिव ने भगवान श्री गणेश को बुद्धि का देवता घोषित किया एवं प्रथम पूज्य होने का आशीर्वाद दिया। 

भगवान श्रीगणेश की आरती एवं आरती मंत्र -

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देव।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेव।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

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