Section 39 of the Code of Civil Procedure, 1908, sub-section 4
जब कोई वाद अन्य स्थानीय अधिकारिता वाले न्यायालय में दायर हो जाता है तब न्यायालय ऐसे वादों को उस न्यायालय में ट्रांसफर कर देता है जो उसकी अधिकारिता रखता है। लेकिन क्या डिक्री को भी न्यायालय न्यायालय में ट्रांसफर किया जा सकता है यदि हाँ तो कब जानिए महत्वपूर्ण जानकारी।सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 39 की परिभाषा (सरल एवं संक्षिप्त शब्दो मे)
न्यायालय डिक्री पारित होने के बाद स्वंय या पक्षकार (डिक्रिधारी) के आवेदन पर निम्न परिस्थितियों में अन्य सक्षम अधिकारिता वाले न्यायालय में डिक्री को निष्पादित कर सकता है जानिए:-
1. वह व्यक्ति जिसके विरुद्ध डिक्री पारित हुई है वह अन्य न्यायालय की अधिकारिता का स्थाई निवासी हैं, अथवा वहां पर कारोबार करता है, अथवा कोई लाभ वहीं से प्राप्त करता है तब।
2. ऐसे व्यक्ति जिसके विरुद्ध डिक्री पारित हुई है उसकी संपत्ति अन्य न्यायालय की स्थानीय सीमा में है। या उसकी कोई अचल संपत्ति जिसका विक्रय करने या परिदान करने के निर्देश दे दिए हैं और वह अन्य न्यायालय की स्थानीय सीमा में है।
उपर्युक्त आधार पर सिविल न्यायालय की डिक्री को ट्रांसफर किया जा सकता है ।
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 धारा 39 की उपधारा 4
लेकिन वर्ष 2002 में सिविल प्रक्रिया में संशोधन कर एक नई उपधारा को जोड़ा गया है 39(4) इसके अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है की न्यायालय अपनी स्थानीय अधिकारिता के बाहर की किसी व्यक्ति या संपत्ति के विरुद्ध डिक्री पारित नहीं करेगा सिर्फ डिक्री का ट्रांसफर ही करेगा।
विशेष नोट:- डिक्री ट्रांसफर के लिए आवेदन की समय सीमा जानिए, डिक्री पारित होने की तिथि से 12 वर्षों के अंदर डिक्री ट्रांसफर का आवेदन किया जा सकता है इसके बाद मान्य नहीं होगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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