62 साल की मुस्लिम महिला, जिसने CrPC में संशोधन करवा दिया - Legal general knowledge

भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहाँ शासन जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चलाया जाता है, अर्थात सरकार चलाने की मुख्य चाबी जनता के हाथों में होती है। इसलिए सरकार को जितने भी फैसले लेने होते हैं, उसमें जनता के किसी भी अधिकार का हनन नहीं होना चाहिए। समय के अनुसार बहुत से कानूनों में संशोधन किया गया है और कुछ कानून संशोधित कानून इतिहास बन गए हैं आज हम एक महत्वपूर्ण कानून की बात कर रहे हैं जानिए।

एक छोटी सी कहानी:- 

शाह बानो 5 बच्चों की माँ थी और 62 वर्ष की उम्र में 1978 में उसके पति मोहम्मद अहमद खान ने उसे तलाक दे दिया था। तलाक देने के बाद शाह बानो पति से भरण पोषण के लिए मुआवजे की मांग को लेकर न्यायालय पहुंची, उसने गुजरा भत्ता की मांग की थी, जो मुस्लिम धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ था। मुस्लिम समुदाय में महिलाओं को तलाक के बाद भरण-पोषण पाने का कानूनी अधिकार नहीं था। इसके कारण सरकार ने भी वृद्धावस्था में तलाकशुदा हुई महिला की कोई मदद नहीं की, लेकिन शाह बानो हिम्मत नही हारी और उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सभी पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। 

शाह बानो बेगम बनाम मोहम्मद अहमद खान- सुप्रीम कोर्ट का फैसला

उक्त मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अंतर्गत भरण पोषण पाने का अधिकार सभी महिलाओं को हैं एवं धारा 125 सभी पर लागू होती है, चाहे वह किसी भी धर्म से क्यों न हो। धारा 125 के खण्ड (ख) मुस्लिम महिलाओं को इस धारा से बाहर रखने के लिए सीमित करने का कोई शब्द शामिल नहीं करता है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दण्ड प्रक्रिया संहिता में संशोधन कर सभी मुस्लिम महिलाओं को भरण पोषण, गुजारा भत्ता प्राप्त करने का कानूनी अधिकार बनाया गया। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665

इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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