civil procedure code of India section 151
जब कोई निर्णय सिविल कोर्ट द्वारा पूर्ण हो जाता है तब किसी पक्षकार को लगता है कि न्यायालय का निर्णय एकपक्षीय है तब वह एक परिसीमा के अंतर्गत उस निर्णय, डिक्री, आदेश को निरस्त करने के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 के आदेश 09 के नियम 13 के अंतर्गत प्रार्थना पत्र न्यायालय में दे सकता है लेकिन अगर वह किसी निर्णय, आदेश या डिक्री के विरुद्ध कोई अपील करना चाहता है तो वह सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 96 उपबन्धों के अधीन अपीली न्यायालय में अपील भी कर सकता है।
सिविल न्यायालय की अंतनिर्हित शक्ति
अब सवाल यह है कि अगर किसी सिविल मामले में एकपक्षीय निर्णय के आवेदन लगाने की परिसीमा निकल जाए या अपील करने की परिसीमा भी समाप्त हो जाए और सिविल प्रक्रिया संहिता में कोई विधि नहीं है जिसका सहारा लेकर पक्षकार स्वंय निर्णय को न्यायालय से निरस्त करवा सके तब सिविल न्यायालय को अंतनिर्हित शक्ति प्राप्त होती है जानिए वह क्या है।
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 की धारा 151 की परिभाषा सरल हिंदी में
जब किसी विधि का प्रावधान सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 में नहीं होगा तब न्यायालय सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 151 के अंतर्गत ऐसी शक्ति का प्रयोग करेगी जो पक्षकारों के न्याय हित में होगी। यानी न्यायालय, न्यायिक प्रक्रिया में होने वाले दुरुपयोग को रोकने एवं यदि धोखे से किसी पक्षकार ने डिक्री, आदेश प्राप्त कर लिया है, उसे रोकने के लिए इस धारा का प्रयोग स्वतंत्र रूप से कर सकते हैं।
इसी धारा के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय ने यूनाइटेड इन्श्योरेंस कम्पनी बनाम राजेन्द्र सिंह मामले में कहा हैं कि "धोखा व न्याय एक साथ नही रह सकते हैं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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