भारत के शहरी इलाकों में रहने वाले नई उम्र के नागरिक शायद नहीं जानते होंगे परंतु शेष पूरा भारत जानता है कि हर कुएं के पानी का स्वाद अलग होता है। एक ही जमीन पर आसपास बने दो कुआं के पानी का स्वाद भी अलग-अलग हैं। सवाल यह है कि किसी कुएं का पानी मीठा और किसी का बेस्वाद क्यों होता है। कोई चमत्कार है या साइंस, आइए पता लगाते हैं।
कुएं के पानी में स्वाद कहां से आता है
यहां अपन अलग-अलग शहरों में स्थित कुओं की बात नहीं कर रहे बल्कि एक ही क्षेत्र में आसपास बने 2 कुओं के अंतर के बारे में बात कर रहे हैं। दोनों के पानी के स्वाद में अंतर होता है। कई बार एक कुएं का पानी मीठा और दूसरे का कड़वा होता है। जबकि दोनों कुओं का जल स्त्रोत एक ही होता है और दोनों की गहराई भी लगभग समान होती है। दरअसल इसके पीछे कोई चमत्कार नहीं बल्कि विज्ञान काम करता है।
सबसे बढ़िया नेचुरल वाटर प्यूरीफायर
जो लोग इस विज्ञान को जानते हैं वह, कुआं खोदते समय सबसे नीचे उसके तल पर आंवले की लकड़ी से बना हुआ वृत्ताकार छल्ला लगा देते हैं। आयुर्वेद में स्पष्ट उल्लेख एक आंवले की लकड़ी इस प्रकृति में उपस्थित सबसे उत्कृष्ट जल शोधक (सबसे बेस्ट वाटर प्यूरीफायर) है। आंवले की लकड़ी का यह छल्ला जब तक अस्तित्व में बना रहता है तब तक कुएं का पानी निर्मल और मीठा बना रहता है।
आप चाहे दो अपने घर की पानी की टंकी में आंवले की लकड़ी का जाल बनाकर उसकी तली में डालकर प्रयोग कर सकते हैं। टंकी का सारा कचरा नीचे जमा हो जाएगा और टंकी में ऊपर की तरफ ना केवल निर्मल पानी मिलेगा बल्कि उसका स्वाद आपके पड़ोसी की टंकी के पानी से मीठा होगा।
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