राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग सिविल कोर्ट के समकक्ष: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट - LAW NOTES

National Commission for Scheduled Castes, Government of India

जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को सिविल कोर्ट के समकक्ष मानते हुए उसके द्वारा जारी किए गए आदेश को वैधानिक करार दिया और उसके आदेश को चुनौती देने वाली कंटेंटमेंट बोर्ड जबलपुर की याचिका को खारिज कर दिया। इसके साथ ही निर्धारित हो गया कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, अनुसूचित जाति के नागरिकों के सिविल मामलों में भी आदेश जारी कर सकता है। 

LAW CASES- कैंट बोर्ड जबलपुर बनाम राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग

कैंट बोर्ड जबलपुर द्वारा सन 2014 में शिकायतकर्ता की सांची कॉर्नर दुकान को अतिक्रमण बताते हुए तोड़ दिया गया था जबकि यह दुकान सन 1997 से विधिवत सक्षम स्वीकृति से संचालित की जा रही थी तथा इसका किराया कैंट बोर्ड में जमा था। आवेदक मौसम पासी द्वारा कैंट बोर्ड की इस कार्रवाई के विरुद्ध उच्च अधिकारियों सहित राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग नई दिल्ली में शिकायत की गई थी। आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 338 के तहत मामले का संज्ञान लेकर कैंटोनमेंट बोर्ड को दिनांक 23 मई 2016 को आदेश दिया था कि शिकायतकर्ता को 3 महीने के भीतर दुकान बनाकर, क्षतिपूर्ति सहित सुपुर्द करें। आयोग के इस आदेश के खिलाफ कैंटोनमेंट बोर्ड द्वारा मध्यप्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर में WP 11949/2017 दाखिल किया गया एवं इस दलील के साथ स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया कि आयोग को इस प्रकार का आदेश जारी करने का अधिकार ही नहीं है। 

NCSC- राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अधिकार

इस याचिका की अंतिम सुनवाई जस्टिस विशाल धगट द्वारा की गई। अन आवेदक मौसम पासी की ओर से अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ठाकुर उपस्थित हुए। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग एक संवैधानिक संस्था है जिसे सिविल कोर्ट का अधिकार प्राप्त है तथा भारत के संविधान के अनुच्छेद 338 के तहत किसी भी शिकायत पर अथवा स्वप्रेरणा से अनुसूचित जाति वर्ग के हित एवं अधिकारों की रक्षा हेतु कार्रवाई करने के अत्यंतिक अधिकार प्राप्त है। 

अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ठाकुर ने न्यायालय को यह भी बताया कि आयोग द्वारा पारित किया गया आदेश कैंटोनमेंट बोर्ड के तत्कालीन सीईओ श्री हरेंद्र सिंह की सहमति से पारित किया गया था। अन्यथा उक्त कार्रवाई के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ एट्रोसिटी एक्ट के अंतर्गत कानूनी कार्रवाई प्रस्तावित थी। अधिवक्ता के तर्कों से सहमत होते हुए हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के निर्णय को संवैधानिक मानते हुए कैंटोनमेंट बोर्ड जबलपुर की याचिका निराकृत कर खारिज कर दी। 

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