Article 44 सबसे सुर्खियों में क्यों है और इसके तहत बने कानून का विरोध क्यों होता है, पढ़िए

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हमारा भारत देश एक धर्मनिरपेक्ष देश है यहाँ हिन्दू, मुस्लिम, पारसी, सिख, ईसाई, जैन, बुद्ध सभी धर्मों के लोग रहते हैं। बहुत से धर्मो के आपने अलग अलग कानून है जैसे हिन्दू धर्म का हिन्दू विधि, मुस्लिम धर्म का  मुस्लिम पर्सनल लॉ उनका शरीयत कानून आदि। यह सभी कानून ब्रटिश सरकार द्वारा बनाए गए कानून  थे। जब हमारा देश आजाद हुआ एवं उसके बाद 1950 में हमारा संविधान बना, तब सभी भारतीयों को समान नागरिक बनाने के लिए भारतीय संविधान में अनुच्छेद 44 शामिल किया गया जानिए भारतीय संविधान,1950 का अनुच्छेद 44 क्या कहता है।

भारतीय संविधान अधिनियम,1950 के अनुच्छेद 44 की परिभाषा

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 राज्य सरकार(अर्थात, केंद्र सरकार या राज्य क्षेत्रों की सरकार) को यह यह निर्देश देता की राज्य समस्त नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता लागू करने का प्रयास करे।

क्या कारण है भारत में अभी तक सिविल नागरिक संहिता लागू नहीं हो रही है जानिए

सिविल नागरिक संहिता का अर्थ होता है सभी धर्मो के व्यक्तियों के लिए समान कानून लागू होना चाहिए वह हिन्दू हो या मुस्लिम अलग अलग कानून को खत्म कर देना लेकिन राज्य सरकार के लिए यह करना काफी मुश्किल है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है और सभी नागरिकों को अपने-अपने धर्म मानने का मौलिक अधिकार प्राप्त है। अगर राज्य सरकार ऐसा कानून बनाती है तो नागरिक मौलिक अधिकारों के उल्लंघन होने पर सुप्रीम कोर्ट तक जा सकते हैं क्योंकि नीति निदेशक नियमों को बनाना राज्य सरकार का दायित्व है न की नागरिकों का मौलिक अधिकार है।

नोट:- भारत में गोवा एक ऐसा प्रदेश हैं जहाँ सिविल नागरिक संहिता लागू है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665

इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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