इंदौर। मध्य प्रदेश के उज्जैन में सन 2007 में नियुक्त हुई महिला संविदा कर्मचारी को 10 साल बाद फर्जी मार्कशीट के नाम पर ना केवल नौकरी से निकाला गया बल्कि उसके खिलाफ FIR दर्ज करवा कर जेल भेज दिया गया। बेगुनाह महिला कर्मचारी को 17 महीने तक जेल में बंद रखा गया। अंततः, हाईकोर्ट में साजिश का खुलासा हुआ। उच्च न्यायालय ने महिला कर्मचारी के खिलाफ साजिश करने वाले अधिकारी पर कठोर कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं। महिला कर्मचारी को उसकी नौकरी और ₹5 लाख बतौर जुर्माना अदा करने के आदेश दिए गए हैं।
INDORE TODAY- डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन के बाद 2007 में संविदा नियुक्ति मिली थी
एडवोकेट सीमा शर्मा के मुताबिक मामला उज्जैन जिले के खाचरौद बालक छात्रावास की असिस्टेंट वार्डन पुष्पा चौहान का है। 2007 में सर्व शिक्षा अभियान के तहत पुष्पा सहित 10 लोगों का चयन असिस्टेंट वार्डन के लिए हुआ था। नियुक्ति के समय पुष्पा ने अपनी मार्कशीट व अन्य दस्तावेज पेश किए थे। कलेक्टर सहित कमेटी ने डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन के बाद पुष्पा को नौकरी दी थी। संविदा नियुक्ति में उन्हें लगातार एक्सटेंशन भी मिला।
10 साल बाद फर्जी मार्कशीट का आरोप लगाकर नौकरी से निकाल दिया
नौकरी के 10 साल बाद 27 फरवरी 2018 को असिस्टेंट प्रोजेक्ट काे-ऑर्डिनेटर मनीषा मिश्रा ने पुष्पा सहित सभी 10 असिस्टेंट वार्डन को अपने मूल दस्तावेज दोबारा पेश करने को कहा। बाकी 9 के कागजात वापस कर दिए गए, लेकिन पुष्पा की 10वीं और 12वीं की मार्कशीट में उम्र के उल्लेख में गड़बड़ी की बात कही गई। कूटरचित दस्तावेज से नौकरी हासिल करने का आरोप लगाते हुए उन्हें नौकरी से हटा दिया गया।
निर्दोष के खिलाफ FIR दर्ज करवा कर जेल भेजा
उज्जैन के माधव नगर थाने में एफआईआर दर्ज होने के बाद 6 सितंबर 2018 को पुष्पा की गिरफ्तारी हुई। उन्हें एक साल, पांच माह तक दुधमुंही बच्ची के साथ जेल में रहना पड़ा। निचली अदालत में सभी आरोप झूठे साबित हुए और उन्हें बरी कर दिया गया। इसके बाद पुष्पा ने नौकरी फिर से पाने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।
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