दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 306 (2) के अनुसार ऐसे सह-आरोपी व्यक्ति जिनके अपराध की जाँच या विचारण सत्र न्यायालय में चल रही है या किसी विशेष न्यायालय में चल रही है। या फिर कोई आरोपित अपराध का दण्ड सात वर्ष या उससे अधिक कारावास का हो उसे क्षमा दान किया जा सकता है। सह आरोपी वह व्यक्ति होता है जिसने किसी अपराध के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मुख्य आरोपी के साथ अपराध में भाग लिया हो। न्यायालय कब सह आरोपी को मुक्त कर सकता है जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 306 की उपधारा 01 की परिभाषा
न्यायालय को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 307 के अंतर्गत सह आरोपी को छोड़ने की शक्ति प्राप्त है:-
• जब अगर कोई आरोप का अन्वेषण पुलिस द्वारा चल रहा हो, या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास जांच पर हो या विचारण पर हो तब।
• प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी अपराध के जांच एवं विचारण पर सह आरोपी को क्षमा कर सकता है।
"जैसे कि भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 300/34 के अंतर्गत किसी व्यक्ति पर हत्या का आरोप है और उसके साथ एक या एक से अधिक अन्य व्यक्ति भी अपराध में शामिल है तब मुख्य आरोपी को छोड़कर अन्य आरोपी व्यक्ति सह आरोपी होंगे एवं उक्त धारा के अंतर्गत वह न्यायालय से क्षमा मांग सकते हैं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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