मंदिर की भूमि का स्वामित्व किसके हाथों में होता है जानिए- legal advice

Bhopal Samachar
0
मध्यप्रदेश भू राजस्व संहिता, 1959 में इतने संशोधन किए जाते हैं कि आम जनता तो दूर की बात वकील भी कंफ्यूज रहते हैं। यही कारण है कि भूमि एवं संपत्ति से संबंधित विवाद साल और साल लंबे चलते रहते हैं। आज प्रश्न उपस्थित हुआ है कि मंदिर की भूमि का स्वामित्व किसके पास में होता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकार के विवाद में महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। आइए पढ़ते हैं:-

LAW CASE-1 मुसम्मात कंचनिया एवं अन्य बनाम शिव राम और अन्य:- 

उक्त मामले में न्यायालय द्वारा कहा गया कि पुजारी मंदिर के संपत्ति का प्रबंधन करने के लिए एक गारण्टी मात्र होता है। यदि पुजारी, उसके लिए सुनिश्चित किए गए दायित्व के निर्वहन करने में और भूमि का प्रबंधन करने में असफल हो जाता है, तब उससे अनुदान वापस लिया जा सकता है। पुजारी मंदिर की भूमि का स्वामी नहीं होता और ना ही वह स्वामित्व से संबंधित अधिकार रखता है। वह केवल एक प्रबंधक होता है जिसे सेवा में कमी का दोषी पाए जाने पर हटाया जा सकता है।

न्यायालय ने यह भी अभिनिर्धारित किया कि कोई भी पुजारी मंदिर की भूमि के स्वामित्व के अधिकार का दावा कर सकता है।

LAW CASE-2 रामचंद (मृतक) द्वारा वि.प्र. बनाम ठाकुर जानकी बल्लभजी महाराज एवं अन्य

उक्त मामला मध्यप्रदेश भूराजस्व संहिता की धारा 158(1) एवं ग्वालियर एक्ट में  पुजारियों को मंदिर की भूमि के अधिकार देने के संबंध था। इस पर न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि किसी पुजारी को मध्यप्रदेश भूराजस्व और ग्वालियर एक्ट के अंतर्गत न तो माफिदार माना जा सकता है और न ही ईनामदार। क्योंकि पुजारी मंदिर की भूमि का स्वामी नहीं है उसे अनुदान प्राप्त करने का अधिकार नहीं है।

क्या राज्य सरकार राजस्व अभिलेखों से पुजारी का नाम निरस्त कर सकती है:-

उपर्युक्त मामले में एक और प्रश्न था, क्या राज्य सरकार प्रशासनिक निर्देशों के माध्यम से राजस्व अभिलेखों से पुजारी का नाम निरस्त कर सकती है। इस संबंध में न्यायालय द्वारा कहा गया की मध्यप्रदेश भूराजस्व संहिता,1959 की धारा 108,109 एवं 110 को दिनांक 20/12/1983 में संशोधित नियमों के अनुसार अधिकार अभिलेखों को बनाये रखने के लिए फार्म नियम-1, हैं जिसके कालम-3, में अध्यासी का नाम, कालम-4, में भूस्वामी या उप पट्टेदार का नाम एवं कालम-12 में रिमार्क का उल्लेख है। 
इसी प्रकार स्वामित्व के कालम में मन्दिर(मूर्ति) का नाम लिखा जाना आवश्यक है। लेकिन अध्यासी के कालम में पुकारी या प्रबंधक का नाम होना आवश्यक नहीं है। एवं कार्यपालक मजिस्ट्रेट पुजारी का नाम राजस्व अभिलेख से निरस्त कर सकता है।

इसी प्रकार मध्यप्रदेश राज्य बनाम घनश्याम दास(वर्ष 1999) में न्यायालय द्वारा कहा गया कि पुजारी का नाम कालम- 12, के रिमार्क दर्ज किया जा सकता है लेकिन मंदिर में निहित संपत्ति के संबंध में कलेक्टर का नाम प्रबंधक के रूप में भी दर्ज नहीं किया जा सकता है क्योंकि कलेक्टर सभी मंदिरों का प्रबंधक नहीं हो सकता है जब तक कोई मंदिर राज्य में निहित न हो।

मंदिर की जमीन विवाद- वर्तमान महत्वपूर्ण जजमेंट सुप्रीम कोर्ट

• मध्यप्रदेश राज्य एवं अन्य बनाम पुजारी उत्थान एवं कल्याण समिति एक ओर अन्य (निर्णय वर्ष 2021):- मामले में उपर्युक्त निर्णय का अवलोकन करते हुए उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया की मंदिर की भूमि का पुजारियों का स्वामित्व अधिकार नहीं है एवं राज्य सरकार में निहित मंदिर की भूमि से पुजारियों का नाम निरस्त करना कलेक्टर वैध कर्तव्य हो सकता है एवं प्रबंधक बन सकता है लेकिन सभी मंदिरों का प्रबंधक नहीं हो सकता है न ही सभी मंदिरों के पुजारी का नाम निरस्त कर सकता है क्योंकि मंदिर निजी भी हो सकते हैं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665

इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com
भोपाल समाचार से जुड़िए
कृपया गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें यहां क्लिक करें
टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें
व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए  यहां क्लिक करें
X-ट्विटर पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
Facebook पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
समाचार भेजें editorbhopalsamachar@gmail.com
जिलों में ब्यूरो/संवाददाता के लिए व्हाट्सएप करें 91652 24289

Post a Comment

0 Comments

Please Select Embedded Mode To show the Comment System.*

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!