किसी भी आरोपी को जमानतीय या अजमानतीय अपराध में जमानत पर छोड़ने से पहले परिवादी को न्यायालय समन के माध्यम से सूचना देता हैं अगर उसे कोई आपत्ति हो तो न्यायालय में लगा सकता है। इसी प्रकार मानहानि का अपराध भी एक जमानतीय अपराध होता है। इसमें आरोपी को जमानत पर छोड़ दिया जाता है। सवाल यह है कि क्या मानहानि के अपराध में बिना पीड़ित व्यक्ति को सूचना दिए बगैर जमानत वैध होगा या अवैध जानते हैं सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण जजमेंट।
रसिकलाल बनाम किशोर खानचन्द्र वाधनानी:-
उक्त मामले में सर्वप्रथम न्यायिक मजिस्ट्रेट ने मानहानि के आरोपी की जमानत पर बिना परिवादी को सूचना दिए छोड़ दिया था। परिवादी ने इसके खिलाफ मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका लगाई एवं उच्च न्यायालय ने जमानत पर छोड़े गए आरोपी की जमानत रद्द कर दी। तब अपीलार्थी (मानहानि के आरोपी द्वारा) ने याचिका को उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की एवं इस वाद में उच्चतम न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि मजिस्ट्रेट द्वारा अपीलार्थी की जमानत मंजूर की जाना उचित एवं सही निर्णय था। मानहानि के अपराध में प्रत्यर्थी को नोटिस जारी करके सूचना देना आवश्यक नहीं है।
अर्थात सुप्रीम कोर्ट द्वारा उक्त वाद द्वारा स्पष्ट कर दिया गया है कि मानहानि का अपराध धारा 500, 501, 502 में आरोपी की जमानत पर छोड़ने से पूर्व परिवादी(शिकायतकर्ता) की सूचना, समन आदि जारी करना आवश्यक नहीं है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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