शिवलिंग से समझिए सबसे बड़ा वैज्ञानिक रहस्य- Amazing facts in Hindi

इसरो से लेकर नासा तक दुनिया के सभी वैज्ञानिक मान चुके हैं कि भगवान शिव और शिवलिंग के रूप में जिस आकृति की पूजा की जाती है। वह कोई काल्पनिक देवता नहीं बल्कि अपने आप में पूर्ण विज्ञान है। इस प्रकार भगवान शिव के रूप में विज्ञान की पूजा की जाती है। यही कारण है कि शिव की पूजा और विज्ञान के अध्ययन के लिए वर्ष में 1 महीने का समय निर्धारित किया गया है जिसे श्रावणमास कहते हैं। 

ज्योतिर्लिंग और स्वयंभू शिवलिंग के विषय में तो सभी लोग जानते हैं परंतु क्या आपको पता है प्राचीन काल में शिवलिंग का निर्माण किस प्रकार से किया जाता था। कैप्सूल जैसा गोल पत्थर जो ऊपर दिखाई देता है, शिवलिंग केवल इतना नहीं होता। सबसे नीचे का भाग चार भुजाओं वाला होता है और मध्य भाग भुजाओं का होता है जो एक आसन पर बना होता है। ऊपर का भाग जो कैप्सूल की तरह दिखाई देता है उसकी पूजा की जाती है। शिवलिंग केवल भारत और श्रीलंका में नहीं पाए जाते बल्कि मानवीय सभ्यता के प्रारंभ के समय में यूरोप में भी पूजे जाते थे। 

शास्त्रों में उल्लेख है कि शिवलिंग में ब्रह्मा विष्णु और महेश का वास होता है। विज्ञान में उल्लेख है कि शिवलिंग में प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन होते हैं। इन तीनों को मिलाकर परमाणु बनता है। आपके लिए सबसे उपयोगी जानकारी यह है कि शिवलिंग में सकारात्मक विद्युत आवेश प्रोटोन ही भगवान विष्णु का प्रतीक है। बिना किसी विद्युत आवेश वाला न्यूट्रॉन महेश का प्रतीक है और नकारात्मक विद्युत आवेश वाला इलेक्ट्रॉन को ब्रह्मा कहा गया है। 

इस प्रकार जब हम शिवलिंग पर तीनों उंगलियों से एक साथ त्रिपुंड बनाते हैं तो ब्रह्मा विष्णु महेश (प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन)= परमाणु की पूजा कर रहे होते हैं। जिसे संतुलित करना अनिवार्य है अन्यथा ब्रह्मांड में इस प्रकार की हलचल होगी कि पृथ्वी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !