NAVRATRI- कन्या पूजन की विधि एवं नियम

navratri kanya pujan vidhi in hindi 

भारतवर्ष की सनातन परंपरा में नवरात्रि का प्रारंभ घटस्थापना (कलश स्थापना) से होता है और कन्या पूजन पर समापन किया जाता है। मान्यता है कि कन्या पूजन करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती है और मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। इस अवसर पर कम से कम नौ कन्याओं का पूजन करने एवं उन्हें पौष्टिक भोजन कराकर संतुष्ट करने का विधान है। 

नवरात्रि में कन्या पूजन किस दिन करना चाहिए

शास्त्रों के अनुसार कन्या पूजन नवमी तिथि के अवसर पर किया जाना चाहिए परंतु यदि किसी पारिवारिक या सामाजिक परंपरा के कारण नवमी तिथि के अवसर पर कन्या पूजन का आयोजन संभव ना हो तो महा अष्टमी (दुर्गा अष्टमी) के अवसर पर कन्या पूजन की अनुमति दी गई है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि साधक अपनी सुविधा के अनुसार कन्या पूजन की तिथि का निर्धारण नहीं कर सकते। 

कन्या पूजन की विधि एवं नियम 

कन्या पूजन के लिए कम से कम 9 कन्याओं को श्रद्धा पूर्वक आमंत्रित करना चाहिए। 
कन्याओं की आयु 3 वर्ष से 9 वर्ष के बीच होनी चाहिए। 
इससे अधिक एवं अन्य आयु वर्ग की कन्याओं को भोजन के लिए आमंत्रित कर सकते हैं। 
कन्या पूजन के समय एक बालक भी उपस्थित होना चाहिए। यह बालक भैरव का प्रतीक माना जाता है। 
कन्याओं को श्रद्धा पूर्वक आमंत्रित करने के बाद आसन प्रदान करें।
कन्याओं के हस्त प्रक्षालन कराएं। (स्वयं श्रद्धा पूर्वक हाथ धुलवाएं)
कन्याओं को पौष्टिक भोजन कराएं। भोजन में हलवा-पूरी और खीर अनिवार्य माने गए हैं। 
भोजन के बाद कन्याओं के हस्त एवं पाद प्रक्षालन कराएं। (स्वयं श्रद्धा पूर्वक हाथ एवं पैर धुलवाएं)
कन्याओं के पैरों के अंगूठे पर कुमकुम, चंदन, फूल और चावल अर्पित करें।
सभी नौ कन्याओं की आरती करें। 
क्षमता के अनुसार फल, वस्त्र और दक्षिणा प्रदान करें। 

मान्यता है कि कन्या पूजन करने से दरिद्रता समाप्त होती है। यदि कर्ज में डूबे हुए हैं तो मुक्ति मिल जाती है। धन एवं आयु की वृद्धि होती है। शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। विद्या की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख एवं समृद्धि का कारण बनती है।

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