FIR के संदर्भ में- थाना प्रभारी के कर्तव्य और पीड़ित व्यक्ति के अधिकार, - CrPC SECTION-154

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-154 के बारे में हर व्यक्ति को जानकारी होती है, इसी धारा के अंतर्गत किसी भी गंभीर मामले की FIR थाने में दर्ज की जाती है। इस धारा के अंतर्गत थाने के थाना प्रभारी (TI) का कर्तव्य होता है कि वह तुरंत किसी गंभीर मामले की प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करें। पीड़ित व्यक्ति अपनी शिकायत मौखिक बोलकर भी दर्ज करवा सकता है, लेकिन धारा 154 सिर्फ FIR दर्ज तक ही सीमित नहीं है इसमें यह भी बताया गया है कि अगर थाने का थाना प्रभारी अगर किसी संज्ञेय अपराध की FIR दर्ज नहीं करता है तब पीड़ित व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत कहाँ शिकायत दर्ज करवा सकता है।

दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 154 की परिभाषा(सरल शब्दों में):-

1. कोई भी पीड़ित व्यक्ति संज्ञेय अपराध की सूचना थाने के थाना प्रभारी को लिखित या मौखिक रूप से दे सकता है। मौखिक रूप से दी गई अपराध की सूचना को अधिकारी तुरंत लेखबद्ध करेगा एवं उस प्रथम सूचना रिपोर्ट, जो पीड़ित व्यक्ति को पढ़कर सुनाया गया और पीड़ित व्यक्ति के उस पर हस्ताक्षर लिए जाएंगे।

लेकिन अगर कोई संज्ञेय अपराध ऐसा है जो किसी स्त्री द्वारा दर्ज किया जाता है अर्थात महिला के ऊपर ऐसिड (अम्ल फेकने का मामला धारा 326 क, ख),स्त्री की लज्जा भंग का अपराध, गलत इरादे से शारीरिक संपर्क करना, पीछा करना या फ़ोटो खीचना, वीडियो बनाना, आपराधिक उद्देश्य से हमला करना(धारा 354, क, ख, ग, घ या 509). या स्त्री से बलात्संग का अपराध (धारा-376, क, ख, ग, घ, कख, घक, घख, ङ, या पास्को एक्ट आदि) की प्रथम सूचना रिपोर्ट किसी महिला अधिकारी के द्वारा की लिखी जाएगी। ऐसे पीड़ित महिला उपर्युक्त मामले की शिकायत दर्ज करवाने में अपने साथ किसी महिला सामाजिक संगठन का साथ भी ले सकती है।

(क) अगर कोई महिला मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग है जो अम्ल फेकने की या छेड़खानी की या बलात्कार की शिकायत कर दर्ज करवाती है तब ऐसे में पुलिस अधिकारी का कर्तव्य होगा कि वह उसी स्थान पर जाकर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करेगा जहाँ महिला बुलाती है। एवं उसकी भाषा को समझने वाले व्यक्ति की व्यवस्था भी करवाएगा। 
(ख) पुलिस अधिकारी ऐसी महिला जो विकलांग या पागल होगी उसके बयान की वीडियो फ़िल्म भी तैयार करेगा।
(ग) ऐसी महिला को तुरंत किसी न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित करेगा एवं कथन को यथाशीघ्र अभिलिखित कराएगा।

(2) अगर कोई भी पुलिस थाना प्रभारी किसी संज्ञेय अपराध की FIR दर्ज कर लेता है तब उस FIR की कॉपी पीड़ित व्यक्ति को निःशुल्क तुरंत देगा।

थाना प्रभारी संज्ञेय अपराध की FIR दर्ज नहीं करे तब:-

धारा 154 की उपधारा 3 के अंतर्गत कोई भी थाने का थाना इंचार्ज किसी संज्ञेय अपराध की FIR दर्ज नहीं करता है तब पीड़ित व्यक्ति अपनी संज्ञेय अपराध की शिकायत को जिले के जिला पुलिस अधीक्षक को स्पीड-पोस्ट डाक द्वारा भेज सकता है या स्वयं उपस्थित होकर इसकी शिकायत कर सकता है। जिला पुलिस अधीक्षक (SP) को अगर लगता है कि शिकायत का अपराध बहुत गंभीर है तब वह इसकी जाँच अपने स्तर से किसी भी पुलिस अधिकारी से उस शिकायत का अन्वेषण करवाएगा एवं अन्वेषण करने वाले अधिकारी को वो सभी अधिकारी प्राप्त होंगे जो संबंधित थाने के थाना प्रभारी को प्राप्त थे। अर्थात जिसने पीड़ित व्यक्ति की FIR दर्ज नहीं कि थी।

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 (1) की अवज्ञा करने पर  भारतीय दण्ड संहिता की धारा 166 (क) में दण्ड का  प्रावधान:-
"अगर किसी व्यक्ति की FIR जो उपर्युक्त संज्ञेय अपराध की हो थाना प्रभारी नहीं लिखता है तब वह ऐसे पुलिस अधिकारी के खिलाफ पीड़ित व्यक्ति भारतीय दण्ड संहिता की धारा 166- (क) के अंतर्गत FIR दर्ज करवा सकता है ऐसे पुलिस अधिकारी को प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा कम से कम 6 माह या अधिक से अधिक दो वर्ष की सजा और जुर्माने से  दण्डित किया जा सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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