निशुल्क भोजन, सरकार की दया या नागरिकों का मौलिक अधिकार - THE CONSTITUTION OF INDIA

भारत के सभी राज्यों में किसी ना किसी नाम से निर्धन नागरिकों के लिए निशुल्क भोजन अथवा नाम मात्र के शुल्क पर भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। टीवी और अखबारों में सरकारी विज्ञापन देखने पर लगता है कि यह सरकार की तरफ से किया गया एक ऐसा प्रयास है, जो यदि नहीं होता तो करोड़ों लोग भूखा मर जाते। सवाल यह है कि क्या इस प्रकार की योजनाएं सचमुच सरकार की दया पर निर्भर करती हैं या फिर यह निर्धन नागरिकों का मौलिक अधिकार है। आइए पढ़ते हैं:-

उच्चतम न्यायालय का महत्वपूर्ण वाद:-

PUCN बनाम भारत संघ【आहार पाने का अधिकार मौलिक अधिकार】- उपर्युक्त मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि ऐसे लोग जो गरीबी रेखा की श्रेणी में आते हैं एवं खाद्य-सामग्री खरीदने की असमर्थता के कारण भूख से पीड़ित रहते हैं। उन्हें अनुच्छेद 21 के अधीन राज्य द्वारा खाद्य सामग्री मुफ्त पाने का मूल अधिकार है। 

एवं उस समय जब राज्य के गोदाम में पर्याप्त मात्रा में अनाज भरे हैं ओर सड़ रहे हो तब ऐसी परिस्थिति में राज्य को सभी वृद्धों, दुर्बल, विकलांग व्यक्ति, निराश्रय व्यक्ति, गर्भवती एवं दूध पिलाने वाली महिलाओं को खाद्य सामग्री प्रदान करना चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि राज्य की गोदाम में जब अनाज खराब हो रहा है तब उपर्युक्त व्यक्ति को ऐसा अनाज खराब होने से पहले ही वितरण कर देना चाहिए। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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