क्या जीविकोपार्जन का अधिकार एक मूल अधिकार है या नहीं, पढ़िए constitution of india article 21

पहले हम आपको बताते हैं कि जीविकोपार्जन का अर्थ क्या है- जीविकोपार्जन वह रोजगार, नौकरी या व्यवसाय है, जो जीवन निर्वाह के उद्देश्य से किया जाता है। ऐसे आर्थिक लाभ या धन अर्जन का मुख्य उद्देश्य जीवन निर्वाह होता है, धन संचय नहीं। अर्थात सिर्फ जीवन जीने के लिए कमाया जाना। क्या भारतीय संविधान में इसे मौलिक अधिकार माना है या नहीं जानते हैं आज के लेख में।

महत्वपूर्ण निर्णायक वाद:-
1. ओलेगा तेलीस बनाम बॉम्बे म्युनिसिपल कारपोरेशन- मामले में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट रूप से अभिनिर्धारित किया है कि जीविकोपार्जन का अधिकार अनुच्छेद-21 के अंतर्गत एक मूल अधिकार है। लेकिन यह भी निर्णय दिया कि वह एक आत्यन्तिक (विस्तरित) अधिकार नहीं है, इस पर विधि का पालन करते हुए कुछ रोक भी लगाई जा सकती है। 

उपर्युक्त मामले में बम्बई शहर के फुटपाथों और मलिन बस्ती में रहने वालों ने बम्बई नगर निगम अधिनियम, 1888 की धारा-313, 313(A), 314 और 497 की धाराओं को विधिमान्यता चुनौती दी। उपर्युक्त धाराओ में नगर निगम को फुटपाथों और सड़कों एवं अन्य सार्वजनिक स्थानों पर सामान बेचने से रोकने एवं उन्हें वहाँ से हटाने की शक्ति प्राप्त है। नगर निगम ने सार्वजनिक फुटपाथ पर सामान बेचने वाले एवं मलिन बस्तियों में रहने वाले व्यक्ति से वहाँ से निकालने का आदेश पारित किया। झुग्गी-झोपड़ी वालो ने दलील दी कि उक्त आदर उन्हें जीविकोपार्जन के अधिकार से वंचित करता था एवं अनुच्छेद-21 पर अतिक्रमण होने के कारण अवैध हैं। 

इस प्रकार न्यायालय ने निर्णय दिया कि झुग्गी झोपड़ी वालों को सार्वजनिक स्थानों पर सामान बेचने का कोई मूल अधिकार नहीं है और नगर निगम की उपर्युक्त सभी धाराएं विधिमान्य है।लेकिन न्यायालय ने उक्त वर्गो की कठिनाई को ध्यान में रखते हुए यह निर्देश दिया कि उनके लिए वैकल्पिक प्रबंध किए जाए जिनको लाइसेंस नहीं मिले उन्हें लाइसेंस दिलवाया जाए एवं उन्हें फेरी लगाने के लिए स्थान निश्चित किये जायें एवं रहने के लिए शासकीय योजनाओं के अंतर्गत की उचित व्यवस्था की जाए।

2. के. चंद्रू बनाम तमिलनाडु राज्य - मामले में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 21 के अंतर्गत न्यायालय उचित और युक्तियुक्त प्रक्रिया द्वारा लोगों को आवास से हटाना तभी माना जाएगा जब उन्हें सभी मूल सुविधाओं के साथ उपयुक्त वैकल्पिक स्थान प्रदान किया गया है।

3. ग्रामीण सेवा संस्था बनाम उत्तर प्रदेश राज्य-मामले में उच्चतम न्यायालय ने अंतरिम आदेश द्वारा राज्य से अपेक्षा की गई कि बाँध के कारण विस्थापित जनजातीय लोगो की आवास एवं पुनर्वास की व्यवस्था करे।

उपर्युक्त वादों द्वारा स्पष्ट होता है कि जीविकोपार्जन का अधिकार एक मूल अधिकार है लेकिन विधि का पालन करते हुए इस पर रोक लगाना कोई अवैध नहीं होगा। एवं सरकार का भी कर्तव्य है कि वह व्यक्तियों को हटाने से पहले उन्हें जीवन जीने की मूलभूत सुविधाएं प्रदान करे एवं रहने के लिए उचित व्यवस्था करे। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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