प्रेस अथवा पुस्तक जब्ती के आदेश के खिलाफ वाद कहाँ दायर किया जाएगा - LEARN CrPC SECTION 95

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 95 कुछ आपत्तिजनक, देश की एकता-अखंडता, धर्म संबंधित भेदभाव उत्पन्न होने वाले आदि शब्दों का प्रकाशन प्रेस या पुस्तक द्वारा किया जाता है तब न्यायालय उपर्युक्त धारा के अंतर्गत ऐसी पत्र-पत्रिकाओं या पुस्तक को जब्ती करने की घोषणा के साथ तलाशी वारण्ट जारी करता है और ऐसे परिसर, कार्यालय को सील कर दिया जाता है। भारत की न्याय व्यवस्था में सरकारी कार्रवाई को चुनौती देने का अधिकार दिया गया है। पढ़िए समाचार पत्र या किताब की जब्ती एवं प्रिंटिंग प्रेस अथवा कार्यालय को सील कर देने की कार्रवाई के खिलाफ किस कानून के तहत कौन से न्यायालय में वाद दायर किया जा सकता है:- 

दण्ड प्रक्रिया संहिता,1860 की धारा 96 की परिभाषा:-

अगर राज्य सरकार के संज्ञान से किसी समाचार पत्र, पत्रिकाएं, पुस्तक या कोई दस्तावेज में आपत्तिजनक, देश की एकता-अखंडता को प्रभावित करने वाले शब्द, सरकार के खिलाफ जनता को विद्रोह के लिए भड़काने, धार्मिक भेदभाव उत्पन्न होने वाले शब्द आदि प्रकाशित किये गए हैं, एवं न्यायालय के आदेश द्वारा ऐसे समाचार पत्र, पुस्तक, पत्रिकाओं को जब्ती किया गया है और आरोपी पर कार्यवाही चालू कर दी है, एवं आरोपित व्यक्ति विश्वास पूर्वक तथ्यों के आधार पर कहता है कि यह कार्रवाई निर्धारित कानून के तहत नहीं है एवं गलत है, तब ऐसा कोई भी व्यक्ति जो उससे संबंध रखता है वह न्यायालय की उपर्युक्त घोषणा के दो माह के अंदर उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) में उस पर लगे आरोपों के खिलाफ याचिका दायर कर सकता है।

राज्य सरकार द्वारा धारा 95 के अंतर्गत प्रेस या पुस्तक पर आरोपों के निराकरण की प्रक्रिया उच्च न्यायालय द्वारा कैसे होगी जानिए।

• जिस उच्च न्यायालय में तीन से तीन से अधिक न्यायाधीश होंगे वहाँ पर तीन न्यायाधीशो की की विशेष न्यायपीठ इसका फैसला करेगी। लेकिन किसी उच्च न्यायालय में हो सकता है तीन से कम न्यायालय होंगे वहाँ पर सब न्यायाधीश को विशेष न्यायपीठ में रखा जाएगा।
• राज्य सरकार ऐसे साक्ष्यों को उच्च न्यायालय में पेश कर सकती है जिस समाचार पत्र, पत्रिका, पुस्तक में कोई आपत्तिजनक, या भड़काऊ शब्द प्रकाशित किये गए थे।
•अगर न्यायालय को लगता है कि समाचार पत्र, पत्रिका, या पुस्तक में ऐसी कोई बात या शब्द नहीं है जिससे कि  देश की एकता-अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव हो, कोई अश्लील,आपत्तिजनक शब्द हो, धार्मिक शत्रुता उत्पन्न हो रही है आदि। तब उच्च न्यायालय धारा 95(1) के जब्ती के आदेश को वापस ले लेगा या आपस्त कर देगा। 

• अगर उन न्यायाधीश की विशेष न्यायपीठ बनी समिति में मतभेद होगा तब इस स्थिति में विनिशचय उन न्यायधीशों की बहुसंख्या की राय के अनुसार होगा।अर्थात तीन न्यायाधीश की समिति में एक न्यायाधीश को लगता है कि कोई निर्णय सत्य नहीं लिया गया है तब दो न्यायाधीश जो निर्णय लेंगे वही अंतिम निर्णय होगा।

उधरणानुसार वाद:- रनजीत डी. उडेसी बनाम महाराष्ट्र राज्य- मामले में अपीलार्थी को धारा 292 के अंतर्गत 'लेडी चैटलीज लवर नामक पुस्तक जिसमे आधुनिक युग में लैंगिक-समागम में निराशा3वर्णन किया गया है इसे बेचने के अपराध में दाण्डित किया गया था। उच्चतम न्यायालय ने इस पुस्तक के कुछ अंशों को हिकलिन की कसौटी के आधार पर अश्लील घोषित कर दिया ऒर अपीलार्थी की सजा को बहाल रखा। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

कानूनी जानकारी से संबंधित 10 सबसे लोकप्रिय लेख

कोर्ट में गीता पर हाथ रखकर कसम क्यों खिलाते थे, रामायण पर क्यों नहीं है
सरकारी अधिकारी निर्दोष नागरिक को जबरन रोककर रखे तो IPC की किस धारा के तहत मामला दर्ज होगा
अधिकारी, कोर्ट में गलत जानकारी पेश कर दे तो विभागीय कार्रवाई होगी या FIR दर्ज होगी
क्या जमानत की शर्तों का उल्लंघन अपराध है, नई FIR दर्ज हो सकती है
एक व्यक्ति अपराध करे और दूसरा सिर्फ साथ रहे तो दूसरा अपराधी माना जाएगा या नहीं
रात के समय किसी के घर में चोरी छुपे घुसना किस धारा के तहत अपराध है
यदि कोई मर्जी के बिना घर में घुस आए तो क्या FIR दर्ज करवाई जा सकती है
धूम्रपान करने वालों के खिलाफ IPC की किस धारा के तहत FIR दर्ज होगी
आम रास्ते में रुकावट पैदा करने वाले के खिलाफ किस धारा के तहत FIR दर्ज होती है
गर्भपात के दौरान यदि महिला की मृत्यु हो गई तो जेल कौन जाएगा डॉक्टर या पति
यदि जबरदस्ती नशे की हालत में अपराध हो जाए तो क्या सजा से माफी मिलेगी

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !