स्त्री का पीछा करना या बार-बार संपर्क करने की कोशिश करना, किस धारा के अंतर्गत अपराध है - LEARN IPC SECTION 354d

Bhopal Samachar
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हेलो सर! कोई मेरा पीछा कर रहा है, या कोई मुझसे संपर्क करनें की कोशिश कर रहा है या कोई मेरी सोशल साइट जैसे फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम आदि की जांच कर रहा है या चैटिंग करने की कोशिश कर रहा है आदि। ऐसी बाते महिलाएं अक्सर किसी थाने में अधिकारी या अन्य कानूनी दायित्व वाले व्यक्ति को कॉल या अन्य माध्यम से बोलती है लेकिन कुछ अधिकारी इस प्रकार की बातों को संज्ञान नहीं लेते हैं एवं बाद में कई बड़ी घटना घट जाती है। लेकिन आज के लेख की धारा को जानना हर महिलाओं को जरूरी है क्योंकि यह अधिकार भारत सरकार ने उन्हें दिया हुआ है।

भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 354 घ की परिभाषा:-

अगर कोई पुरूष किसी महिला का निम्न प्रकार से पीछा करता है-
1. वह स्त्री कब-कहाँ जाती है इसकी जानकारी रखना।
2. इस उद्देश्य से पीछा करना जैसे- प्रेम-वार्तालाप, गलत बात करने के लिए, महिला की बिना मर्जी के सम्पर्क बनाने की कोशिश करना।
3. सोशल साइट्स जैसे- फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम आदि से महिला से सम्पर्क बनाना या उनकी id को गुप्त रूप से देखना आदि।
उपर्युक्त कृत्य दण्ड संहिता की धारा 354 घ के अंतर्गत आते हैं।
(नोट:- विधिक द्वारा किसी भी प्रकार से जानकारी लेना, पीछा करना आदि अपराध नहीं होता है।)

महत्वपूर्ण नोट:- अगर किसी महिला के साथ उपर्युक्त अपराध हो रहा है तो वह नजदीक थाना प्रभारी से धारा 354 घ के अंतर्गत शिकायत कर सकती है। वहाँ FIR दर्ज नहीं करते हैं तो SP (पुलिस अधीक्षक अथवा पुलिस कमिश्नर) से शिकायत कर सकती है। अगर वहाँ पर भी आपकी शिकायत को मजाक समझा जाता है तो इन अधिकारी एवं अपराध की शिकायत न्यायालय में किसी भी मजिस्ट्रेट के पास कर सकते हैं। क्योंकि कोई भी लोकसेवक विधि की भूल करता है तो न्यायालय द्वारा यह क्षमा योग्य नहीं है।

भारतीय दंड संहिता,1860 की धारा 354 घ के अन्तर्गत दण्ड का प्रावधान:-

इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं होते हैं। इस धारा के अपराध को दो भागों में बांटा गया है:-
1. यह अपराध संज्ञेय एवं जमानतीय होते हैं, इनकी सुनवाई का अधिकार किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट को है। सजा- प्रथम बार दोषसिद्धि होने पर तीन वर्ष का कारावास एवं जुर्माना से दाण्डित किसी जा सकता है।
2. द्वितीय बार में है अपराध संज्ञेय एवं अजमानतीय होते हैं, इनकी सुनवाई का अधिकार किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट को है। सजा - इस अपराध के लिए पाँच वर्ष का कारावास एवं जुर्माने से दाण्डित किया जा सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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