गणेश जी को प्रथम पूज्य बनाने का लॉजिक क्या है, ध्यान से पढ़िए | HINDU RELIGION FACTS

Bhopal Samachar
यह तो हम सभी जानते हैं धार्मिक कार्यक्रमों में सबसे पहले भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है। इसकी कुछ कथाएं भी प्रचलित है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूज्य बनाने का लॉजिक क्या है। क्या सिर्फ एक खेल में जीत जाने से कोई प्रथम पूज्य हो जाता है या फिर इसके पीछे कोई गहरा रहस्य छुपा हुआ है। क्या मनुष्य जाति के लिए कोई विशेष संदेश है। 

सबसे पहले पद्मपुराण की कथा 

पद्मपुराण के अनुसार सृष्टि के निर्माण के बाद देवताओं के बीच एक प्रश्न उपस्थित हुआ कि सबसे पहले किस देवता की पूजा की जाएगी। सभी देवता प्रश्न को लेकर भगवान ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। ब्रह्म देव ने सभी देवताओं के बीच एक प्रतियोगिता का आयोजन किया। जो भी देवता ब्रह्मांड की परिक्रमा करके सबसे पहले आएगा उसे ही प्रथम पूज्य माना जाएगा। सभी देवता अपने अपने वाहनों पर सवार होकर परिक्रमा के लिए निकल गए। भगवान श्री गणेश का वाहन चूहा था। श्री गणेश ने भी प्रतिस्पर्धा में भाग लिया परंतु चूहे पर सवार होकर परिक्रमा के लिए नहीं गए। उन्होंने ब्रह्मलोक की भूमि पर एक शब्द लिखा 'राम' और उसकी 7 परिक्रमा पूरी की। ब्रह्मा जी ने श्रीगणेश को प्रथम पूज्य घोषित किया। क्योंकि और राम के नाम में ही साक्षात श्रीराम का अस्तित्व समाया हुआ है। और भगवान श्रीराम में संपूर्ण ब्रह्मांड निहित है। 

शिवपुराण की कथा तो आपको भी याद होगी 

शिवपुराण की कथा तो सबसे लोकप्रिय है। भगवान शिव ने भगवान श्री गणेश और उनके भाई कार्तिकेय के बीच बुद्धि की परीक्षा का आयोजन किया। जब दोनों भाई की परीक्षा के लिए उपस्थित हुए तो भगवान शिव ने कहा कि जो भी ब्रह्मांड की परिक्रमा करके सबसे पहले कैलाश पर्वत पर वापस आएगा उसे ही विजई माना जाएगा। भगवान कार्तिकेय अपने वाहन और पर सवार होकर परिक्रमा के लिए निकल पड़े। भगवान श्री गणेश वही खड़े रहे। उन्होंने अपने माता-पिता की परिक्रमा की। प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें प्रथम पूज्य होने का वरदान दिया। 

लॉजिक क्या है, भगवान श्री गणेश जी प्रथम पूज्य क्यों 

पद्म पुराण की कथा में भगवान श्री गणेश ने साधन विहीन होने के बावजूद प्रतिस्पर्धा में भाग लेने का साहस दिखाया और अपने बुद्धि का उपयोग करते हुए ब्रह्मांड की एक नहीं सात परिक्रमा की। शिवपुराण की कथा में भगवान शिव ने ' बुद्धि की परीक्षा' का आयोजन किया था। जबकि प्रतियोगिता में ब्रह्मांड की परिक्रमा का लक्ष्य दिया गया। एक बात स्पष्ट है। परीक्षा बुद्धि की थी गति कि नहीं। प्रश्न गलत था परंतु उत्तर अनिवार्य था इसलिए जिस तरह का प्रश्न आया उसी तरह का उत्तर भगवान श्री गणेश ने प्रस्तुत किया। इस तरह भगवान श्री गणेश ने बौद्धिक चातुर्य का सर्वोत्तम उदाहरण प्रस्तुत किया। लॉजिक यह है कि आपके पास साधन हो या ना हो, चाहे जीवन की परीक्षा में प्रश्न गलत ही क्यों ना जाए। यदि बुद्धि है तो विजय आपकी होगी। मनुष्य के जीवन में बुद्धि की आवश्यकता धन या शक्ति से कहीं ज्यादा है। बुद्धि से धन कमाया जा सकता है। शक्तिशाली भी बना जा सकता है परंतु धन से बुद्धि नहीं खरीदी जा सकती। कोई भी शक्तिशाली युवक बुद्धि पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता। इसलिए बुद्धि के देवता भगवान श्री गणेश प्रथम पूज्य है।

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