जाड़े के साथ जहरीली हवा की दस्तक | EDITORIAL by Rakesh Dubey

Bhopal Samachar
ग्वालियर से लौट रहा हूँ, दिल्ली की ओर से आने वाली ट्रेन सुस्त होने लगी है। हर जाड़े में ऐसा ही होता है। जाड़े की तेजी के साथ प्राकृतिक कोहरा और मानव निर्मित धुआं फैलने लगता है। सहयात्री इस बात के संकेत दे रहे हैं कि जाड़े की आहट के साथ ही जहरीली हवा ने उत्तर भारत को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में खेतों में पराली जलाने का सिलसिला अभी से शुरू हो गया है। इस वर्ष मॉनसून की अवधि लंबी होने के कारण किसानों के पास खेत को अगली फसल के लिए तैयार करने का समय कम है। ऐसे में पराली जलाई जा रही है।

पराली जलाने का यह काम आगामी दिनों में बहुत तेज हो सकता है| इसके साथ ही दीवाली के पटाखों और मौसम ठंड होने से दिल्ली समेत उत्तर भारत में वायु प्रदूषण बढ़ने की आशंका है| इन कारणों की चर्चा करते हुए यह भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है कि पराली जलानेवाले किसानों और मौसम के बदलने पर सारा दोष मढ़ना कहाँ तक  उचित है| शहरों की हवा में जहर घुलने के कई कारण स्थानीय भी हैं| वाहनों से उत्सर्जन, अंधाधुंध निर्माण कार्य और औद्योगिक इकाइयों का धुआं इसके लिए बराबरी के  जिम्मेदार हैं|

विश्व के सबसे अधिक प्रदूषित २० शहरों में १४  शहर भारत में ही हैं और दिल्ली भी उनमें शामिल है| शहरीकरण से न केवल आबादी का घनत्व बढ़ रहा है, बल्कि जरूरतों को पूरा करने का दबाव भी बढ़ा है| दुर्भाग्य से हमारे शहरों का प्रबंधन लंबे अरसे से लचर है तथा नगर निगम व नगरपालिकाएं बदहाल हैं|  प्रदूषित हवा में सांस लेने से हुईं बीमारियों के कारण सालाना लाखों लोग मौत के शिकार हो जाते हैं|  इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों और बुजुर्गों पर होता है|  इस समस्या से बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है तथा मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा होती हैं|

हमारे देश में मौत के प्रमुख कारणों में वायु प्रदूषण तीसरे स्थान पर है, इससे कार्य-क्षमता पर भी नकारात्मक असर होता है| प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने सभी देशों से २०३०  तक विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित वायु गुणवत्ता मानकों को हासिल करने के लिए नीतिगत प्रयास करने का आह्वान किया है|  

भारत में प्रदूषण को रोकने और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने की कोशिश हो रही है| हर शहर में प्रदूषण दिखाने वाले यंत्र लग रहे है, भोपाल में भी ऐसा ही कोई यंत्र टी टी नगर थाने के पास लग रहा है, जो इस बात का संकेत है कि भोपाल का मौसम बदल रहा है, प्रदूषण बढ़ रहा है |भोपाल के साथ पूरे देश में  जल संरक्षण करने और प्लास्टिक के कम उपयोग पर जोर दिया जा रहा है| इन प्रयासों से सकल घरेलू उत्पादन के अनुपात में कार्बन उत्सर्जन में २१ प्रतिशत की कमी हुई है| रसोई गैस की सुविधा मुहैया कराने और स्वच्छ भारत अभियान के कार्यक्रमों से भी वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने में मदद मिल रही है| परंतु वाहनों, निर्माण और उद्योगों से जनित प्रदूषण की रोकथाम के लिए ठोस व दीर्घकालिक पहलों की दरकार है| वर्ष २०५०  तक भारत की मौजूदा शहरी आबादी में ४५  करोड़ लोग और जुड़ेंगे| हालिया शोध यह भी इंगित करते हैं कि अगले एक दशक में ६७.४ करोड़ भारतीय प्रदूषित हवा में सांस लेने के लिए मजबूर होंगे|

ऐसे में इस भयावह समस्या के प्रभावी समाधान के लिए अग्रसर होने के अलावा कोई विकल्प नहीं है| एक ओर केंद्र व राज्य सरकारों को नीतियों और कार्यक्रमों पर ध्यान देना चाहिए और दूसरी तरफ समाज को भी सकारात्मक सक्रियता प्रदर्शित करना चाहिए|
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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