फुटपाथ किसके लिए है ? | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। बड़ी अजीब हालत है, फुटपाथों पर पार्किंग पूरी तरह प्रतिबंधित होने के बावजूद इन पर वाहन पार्क किये जा रहे हैं,दुकानें लग रही हैं । रिहायशी इलाकों में सरकारी जमीन पर अनधिकृत रूप से पार्किंग, विशेष रूप से भूखण्डों वाली कालोनियों में, यह समस्या गंभीर रूप ले रही है, क्योंकि लोगों ने अपने भूखंडों को तो पूरी तरह आवासीय परिसर में तबदील कर लिया है| इस वजह से पार्किंग सड़कों पर ही हो रही है।

स्थिति यह है कि आज भोपाल से लेकर दिल्ली और अन्य बड़े शहरों में अधिकांश इलाकों में फुटपाथ नजर ही नहीं आता। इन फुटपाथ पर दुकानदारों ने अवैध कब्जा कर रखा है। इसका नतीजा यह है कि आम जनता सड़कों पर चलने और सड़क दुर्घटनाओं की चुनौतियों का सामना करने के लिये मजबूर है। फुटपाथ को अपनी जागीर बनाने के साथ ही कालोनी निवासियों ने सड़कों पर अपने वाहन पार्क करने शुरू कर दिये हैं। स्थिति यह हो गयी है कि अनेक कालोनियों में आवागमन के लिये सड़कें संकरी होने लगी हैं, क्योंकि सड़कों पर दोनों ओर निजी वाहनों ने कब्जा कर रखा है।

फुटपाथ और सड़कों पर हो रही पार्किंग से उत्पन्न समस्या की ओर हाल ही उच्चतम न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया गया। न्यायालय ने इसे गंभीरता से लेते हुए टिप्पणी की कि फुटपाथों पर पार्किंग पूरी तरह प्रतिबंधित है और किसी को किसी भी परिस्थिति में इसका उल्लंघन नहीं करने दिया जा सकता। इस स्थिति को देखते हुए शीर्ष अदालत ने अब स्थानीय निकायों को निर्देश दिया है कि फुटपाथ पर सुरक्षा के नाम पर अनधिकृत रूप से किये गये सभी निर्माणों को सार्वजनिक स्थल से हटाया जाये। न्यायालय ने अतिक्रमण करने वालों के घरों की बिजली और पानी काटने के भी आदेश दिये हैं। न्यायालय ने वाहनों की बढ़ती संख्या और पार्किंग की समस्या को देखते हुए इससे निपटने के लिये नयी पार्किंग नीति तैयार करने पर जोर दिया है। न्यायालय महसूस करता है कि शहरी क्षेत्र की इस समस्या से निपटने में सरकार और प्रशासन बुरी तरह विफल रहा है।भोपाल नगर निगम का हाथ तो वैसे भी न्यायालय के फैसले मानने में कमजोर है | फैसले या तो पढ़े नही जाते या समझने में सालों लग जाते हैं |

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता का विचार है कि सरकार को किसी भी परियोजना को मंजूरी देने से पहले अगले 25 साल के लिये पार्किंग की जरूरतों का आकलन करना होगा। इस समस्या का समाधान खोजने में विफलता का ही नतीजा है कि अक्सर स्थानीय कालोनियों में कार पार्किंग को लेकर लोगों में झगड़ा और मारपीट तक होने लगती है। कभी कभी मारपीट में लोगों की जान भी चली जाती है। लगता है कि सभी महानगरों और बड़े शहरों में बहुमंजिला पार्किंग की व्यवस्था समय की मांग हो गयी है।

यूँ तो दिल्ली में न्यायालय ने एक निगरानी समिति भी गठित कर रखी है। इसके बावजूद, सरकारी जमीन पर अतिक्रमण, रिहायशी परिसरों का वाणिज्यिक उपयोग और अनधिकृत निर्माण का सिलसिला पूरे देश में जारी है। अतिक्रमण का यह सिलसिला सिर्फ दिल्ली या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है। शीर्ष अदालत इस तथ्य को जानती है। न्यायालय राज्यों में कार्यरत नगर निगमों और दूसरे प्राधिकारों से अपेक्षा करता है कि वे सरकारी जमीन को अतिक्रमण से मुक्त कराने के लिये प्रभावी कदम उठायेंगे ,लेकिन इस अपेक्षा के बाद फिर से अतिक्रमण होने लगता है।स्थिति की गंभीरता को देखते हुए केन्द्र सरकार के शहरी आवास मंत्रालय के साथ ही राज्यों के अधीन आने वाले स्थानीय निकायों को पैदल चलने वाले राहगीरों के लिये फुटपाथ उपलब्ध कराने और इनसे अनधिकृत कब्जों को हटाने के लिये बड़े पैमाने पर अभियान चलाना होगा। अगर संभव हो तो इस तरह का अतिक्रमण करने वालों पर भारी जुर्माना किया जाये जैसा कि नये मोटर वाहन कानून के तहत यातायात नियमों के उल्लंघन करने पर लगाया जा रहा है| उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्यों में जिला स्तर पर प्रशासन और स्थानीय निकाय इस ओर गंभीरता से ध्यान देकर फुटपाथों को पैदल राहगीरों के लिये उपलब्ध करायेंगे।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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