आईने में पाकिस्तान | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। कश्मीर को लेकर पाकिस्तान अपनी बैचेनी दुनिया भर में जाहिर कर रहा है यह अलग बात है कि कोई उसकी सुन नहीं रहा है। उसके हथियार उसके ही खिलाफ इस्तेमाल होते दिख रहे हैं | भारत पर निशाना साधनेके चक्कर में उसे यह तक मालूम नहीं रहता कि ठीक उसकी नाक के नीचे क्या हो रहा है? पाक के प्रधानमंत्री इमरान खान पर ही निशाना साधने वाले पूर्व विधायक ने दिल्ली में शरण ली है। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत में अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित सीट से विधायक रह चुके बलदेव कुमार अब सपरिवार दिल्ली पहुंच चुके हैं और उन्होंने भारत सरकार से शरण मांगी है. उन्होंने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की वे सारी कहानियां एक बार फिर बताई हैं, जो अब दुनिया के लिए नई नहीं रह गईं।

बलदेव कुमार ने भारतीय प्रधानमंत्री से यह भी मांग की है कि उन्हें पाकिस्तानी अल्पसंख्यकों को भारत में शरण देने के विशेष प्रावधान करने चाहिए और इसे प्राथमिकता देनी चाहिए। बलदेव कुमार का कहना है कि सिर्फ अल्पसंख्यक ही नहीं, पाकिस्तान में इस समय तो कई मुस्लिम तबकों का भी उत्पीड़न हो रहा है। इनमें खास तौर से उन्होंने उन उर्दूभाषी मुहाजिरों का नाम लिया, जो विभाजन के बाद पाकिस्तान में बसने के इरादे से वहां गए थे। इसके साथ ही उन्होंने बलूचिस्तान के लोगों का नाम भी लिया, जिनका उत्पीड़न भी जगजाहिर है। बलदेव कुमार के इन आरोपों के साथ ही एक सप्ताह पुराना वह संदर्भ भी जुड़ रहा है, जब पाकिस्तान में एक नाबालिग सिख लड़की का अपहरण कर न सिर्फ उसका जबरन धर्मांतरण करवाया गया, बल्कि उसका जबरदस्ती निकाह भी करवा दिया गया। 

पाकिस्तान बलदेव कुमार के अतीत की बात करके इन सारे आरोपों का खंडन करने की कोशिश कर रहा है । किउसका तर्क है बलदेव कुमार पाकिस्तान के एक ऐसे प्रदेश के राजनीतिज्ञ रहे हैं, हिंसा जिसकी राजनीति का ही नहीं, उसके समाज का भी एक अभिन्न हिस्सा मानी जाती है। तीन साल पहले उन पर अपने सूबे के एक अल्पसंख्यक नेता सरदार सोरन सिंह की हत्या का आरोप लगा था। उन पर इसका मुकदमा आतंकवाद विरोधी अदालत में चला था, जिसमें वह मुख्य अभियुक्त थे, लेकिन पिछले साल इस अदालत ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया था। फिलहाल यहां बलदेव कुमार का अतीत मुद्दा नहीं है। मसला पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न है, जो लगातार बढ़ रहा है। बलदेव कुमार अकेले नहीं हैं, भारत में शरण मांगने और चाहने वाले पाकिस्तानियों की संख्या खासी बड़ी है। वहां अल्पसंख्यकों के हाल को सिर्फ एक आंकडे़ से अच्छी तरह समझा जा सकता है कि जहां 1947 में पाकिस्तान में 23 प्रतिशत अल्पसंख्यक थे, वहीं अब उनकी तादाद घटकर महज 3 प्रतिशत रह गई है।

भारत में कुछ लोग पता नहीं क्यों पाकिस्तान के इन हालात पर चिंता व्यक्त ही नहीं करते बल्कि मुहम्मद अली जिन्ना के पक्ष में तर्क देते हैं कि जिन्ना ऐसा मुल्क बनाना चाहते थे, जहां सभी धर्मों के लोग अमन-चैन से रह सकें। लेकिन सच यही है कि जिस मजहबी उन्माद पर सवार होकर जिन्ना ने पाकिस्तान को हासिल करने का सफर तय किया था, उसका हश्र इसके अलावा कुछ और हो नहीं सकता था। उसकी राजनीतिक, सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक किसी भी व्यवस्था में कुछ ठीक नहीं चल रहा। इस मामले में पाकिस्तान दुनिया के लिए एक सबक भी है कि मजहबी उन्माद की राजनीति अंतत: किसी मुल्क को कहां ले जाती है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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