अशोक सिंह की नियुक्ति: सिंधिया को घर मे ही घेरने की रणनीति | MY OPINION by AJAY KHEMARIYA

मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने अपनी पहली राजनीतिक नियुक्ति काँग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के घर ग्वालियर से की है। ग्वालियर निवासी मप्र कांग्रेस के उपाध्यक्ष अशोक सिंह को शीर्ष सहकारी बैंक 'अपेक्स बैंक "का प्रशासक बनाया गया है इससे पहले इस पद पर नवनिर्वाचित विदिशा सांसद रमाकांत भार्गव पदस्थ थे। यूं तो हर नई सरकार अपने कार्यकर्ताओं के लिये निगम, मंडल, बोर्ड में नियुक्तियां करती ही है लेकिन मप्र की मौजूदा सरकार में हुई इस पहली राजनीतिक नियुक्ति के निहितार्थ सामान्य परम्परा के अनुपालन से कहीं आगे के अर्थ और संकेत भी देते है।

ग्वालियर कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का घर है उनकी रियासत भी रहा है यह इलाका। इसलिये कमलनाथ ने पहली नियक्ति ग्वालियर से करके एक सन्देश देने की कोशिश की है इस सन्देश की इबारत औऱ पात्र दोनो दिग्विजय सिंह की पाठशाला से जनरेट है। टाइमिंग भी क्या गजब की रही ठीक उसी दिन जब श्री सिंधिया राजधानी भोपाल में गुना से अपनी ऐतिहासिक  पराजय को भुलाने की कोशिशों में नमूदार थे उधर श्यामला हिल्स की पहाड़ियों में अशोक सिंह की अपेक्स बैंक जैसी बड़ी संस्था में ताजपोशी के हरूफ आकार ले रहे थे। 

मप्र में कांग्रेस की सियासत के जानकार इसे सरकार में छिड़ी कबीलाई जंग के साथ जोड़कर देख रहे है क्योंकि श्री अशोक सिंह वो शख्सियत है जो कभी भी  सिंधियाज की नजरों में निष्ठावान नही रहे है  भले ही वे एक कैडरबेस कांग्रेसी खानदान से आते हो उनके दादा कक्का डोंगर सिंह आजादी की लड़ाई में शरीक रहे कांग्रेसी रहे और पिता स्व राजेन्द्र सिंह भी मंत्री तक बने, पर सच्चाई यह है कि अशोक सिंह की लाख विनम्र और सौम्य छवि भी उन्हें सिंधिया विरोधी कैम्प से बाहर नही ला पाई।अशोक सिंह 2007 के उपचुनाव  से लगातार 4 चुनाव ग्वालियर लोकसभा से हारे है 2019 को छोड़ शेष तीन चुनाव वे जीत के दरवाजे पर पहुचकर हारे। इस चुनाव में उनका टिकट सिंधिया की रजामंदी के बाबजूद दिया गया इसके लिये कमलनाथ, दिग्विजय और अरुण यादव ने पूरा जोर लगा दिया था अंदरूनी सच्चाई यह थी कि सिंधिया इस निर्णय से इतने नाराज थे कि वे ग्वालियर प्रचार करने नही गए।

असल मे अशोक सिंह बड़े होटल कारोबारी भी है ग्वालियर में 15 साल तक कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं का ठिकाना उनका सेंट्रल पार्क होटल ही रहा है वे आर्थिक रूप से इतने सक्षम है कि अंचल के तमाम विधायक उम्मीदवार को फायनेंस करते रहे है यहाँ तक कि सिंधिया कोटे के पोहरी, करैरा, भितरवार, ग्वालियर पूर्व, डबरा, के कैंडिडेट की जीत के लिये। उन्होंने जातीय औऱ अन्य माध्यमों से भरपूर मदद की। अरुण यादव के पीसीसी चीफ रहते अशोक सिंह की पहचान को व्यापक विस्तार मिला। सम्भव है ग्वालियर में अशोक सिंह की राजनीतिक काठी में यह इजाफा वह भी बगैर सिंधिया की सहमति से इस गतिरोध का वायस बना है। इस बीच लोकसभा का चौथी बार उनका टिकट जिन परिस्थितियों में फाइनल हुआ वह इस बात का प्रमाण था कि प्रदेश की सियासत में सिंधिया के विरोधी अशोक सिंह के जरिये एक शक्ति केंद्र  उनके ही घर मे बना रहे है।

इस सब के इतर अशोक सिंह ने ओबीसी फेक्टर को भी पूरे ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र में बहुत ही करीने से साध कर अपनी ताकत बढ़ा ली है।उन्होंने अपने निजी हेलीकॉप्टर से इस विधानसभा चुनाव में प्रचार किया अमूमन 34 सीटों वाले  इस ग्वालियर चंबल में चौपर से प्रचार सिंधियाज ही करते रहे सीएम पीएम को छोड़कर।जाहिर है अशोक सिंह जो खुद कभी एमएलए या एमपी नही रहे है बल्कि चार चुनाव हार चुके है का अपैक्स बैंक का मुखिया बनाना कमलनाथ और दिग्विजय की युगलबंदी का एक जबाब है सिंधिया को।

गुना से लोकसभा हारने के बाद सिंधिया का प्रभाव कमजोर हुआ है क्योंकि वे अपने परम्परागत इलाके से हारे है जबकि दिग्विजय सिंह भोपाल जाकर हारे है जो बीजेपी का गढ़ है, वही कमलनाथ कैसे भी अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे है। मप्र की मौजूदा कमलनाथ सरकार में जिस तरह से सिंधिया समर्थक मंत्री दबाब बनाने में लगे है वह किसी से छिपा नही है कैबिनेट की बैठकों में खुलेआम सीएम और सिंधिया कोटे के मंत्रियों के बीच मतभेद जगजाहिर है आये दिन डिनर के नाम पर ये मंत्री एकजुट होकर दबाब बनाते है कि पीसीसी चीफ का पद सिंधिया को दिया जाए जिस पर अभी सीएम खुद काबिज है।

भोपाल के ताजा दौरे को सिंधिया कोटे के मंत्रियों ने भव्य बनाने में कोई कसर नही छोड़ी मानो किसी बड़ी विजय के बाद सिंधिया भोपाल पहुँच रहे हो प्रदेश भर के उनके समर्थक वहां जुटे।सवास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट के बंगले पर भव्य डिनर भी हुआ।उनकी पत्रकार वार्ता विधानसभा परिसर में हुई।लेकिन यह दौरा काँग्रेस में उपर से सब ठीक है का संदेश देने में भी विफल रहा क्योंकि अगले ही दिन कमलनाथ सरकार के मंत्रियों में सिंधिया के उस बयान पर वार छिड़ गया जिसमें उन्होंने यह कह दिया था कि "सरकार में मुख्यमंत्री, मंत्री,औऱ अफसर सब बराबर होते है"पीडब्लूडी मंत्री सज्जन वर्मा ने इस बयान को सार्वजनिक रूप से गलत बताया और कहाकि सीएम सर्वोपरि है कमोवेश आबकारी मंत्री ने भी कुछ ऐसी ही राय जाहिर की।

असल मे सिंधिया मप्र में सीएम पद के स्वाभाविक दावेदार थे उन्होंने कैम्पेन कमेटी के अध्यक्ष के नाते विधानसभा चुनाव में जमकर मेहनत की लेकिन इसके बाबजूद वे उतनी संख्या में विधायक नही जिता पाए जितना दिग्विजय सिंह और कमलनाथ सफल रहे ।मप्र में जमीनी स्तर पर आज भी सबसे सशक्त नेटवर्क दिग्विजय सिंह का ही है और कमलनाथ सरकार में असली सँख्याबल भी दिग्विजय सिंह के पास ही है सिंधिया लोकप्रिय फेस तो है लेकिन उनके पास मजबूत फॉलोअर प्रदेश भर में नही है उनका कांग्रेस के प्रति आग्रह भी दिग्विजय सिंह की तरह कट्टर नही है,वे कुशल वक्ता है पर उनकी संगठन क्षमता आज भी संदिग्ध है उनकी गुना से लोकसभा में हार यह साबित करती है कि संसदीय क्षेत्र तक मे कांग्रेस का कोई जमीनी कैडर खड़ा नही हुआ है।

दिग्विजय इस मामले में उनसे बीस है भले ही वे आज लोकप्रिय न रहे हो पर कैडर औऱ फॉलोइंग लाइन में आज भी उनका कोई मुकाबला नही है।मप्र के दो बार  प्रदेश अध्यक्ष और सीएम रहे दिग्विजय  के पास आज भी कांग्रेस की जमा पूंजी सभी नेताओं से कहीं ज्यादा है ,कमलनाथ सदैव छिंदवाडा औऱ दिल्ली तक ज्यादा हुआ तो जबलपुर, सिवनी, बैतूल, बालाघाट जिलों तक सीमित रहे। इसलिय आज भी कांग्रेस में दिग्विजय फैक्टर सबसे भारी है। मप्र की सियासत में राजा बनाम महाराज की संसदीय जंग 35 साल पुरानी है जो नई पीढ़ी में भी बरकरार ही है।

मप्र के सीएम कमलनाथ इस जंग में फिलहाल दिग्विजय के साथ है क्योंकि वे जानते है दिग्विजय 67 साल में भी तीन हजार किलोमीटर पैदल नर्मदा यात्रा कर सकते है।उनके समर्थक मंत्री विधायक भी उनकी जद से कभी बाहर नही जाते है जैसा कि केपी सिंह कक्काजू जो छह बार के विधायक है लेकिन मंत्री न बनने के बाद भी चुप है।

कमलनाथ औऱ दिग्विजय सिंह दोनो यह जानते है कि आलाकमान मप्र की जमीनी हकीकत से पूर्णतः वाकिफ नही है  यहां बीजेपी और खासकर शिवराज सिंह ने जो जनाधार निर्मित कर लिया है उसे ग्लैमरस फेस औऱ फेम से नही तोड़ा जा सकता है अगर कैडर को दरकिनार किया जाता रहा तो कांग्रेस के लिये मप्र भी यूपी बिहार  बनते देर नही लगनी 15 साल बाद भी सत्ता कांग्रेस को किसी जनसंघर्ष से नही बल्कि कतिपय सत्ता विरोधी माइंडसेट वाले वोटर से हांसिल हुई है ऐसे में मप्र के तीन बड़े नेताओं का यह आपसी संघर्स आने वाले दिनों में कर्नाटका,गोवा की तरह परेशानी का सबब न बन जाये।

मप्र की मौजूदा कांग्रेस में दिग्विजय सिंह को कोई दरकिनार नही कर सकता है और राधौगढ़ का यह राजा किसी भी सूरत में ग्वालियर के महाराजा को मप्र में किसी ठसक औऱ हनक के साथ स्वीकार करने की मनःस्थिति शायद ही बना पाएं। कमलनाथ आज सही मायनों में दिग्विजय के भरोसे है राहुल,सोनिया या किसी नए संभावित ऊर्जावान अध्यक्ष के नही। जैसा कि सिंधिया ने कहा है कि नया राष्ट्रीय अध्यक्ष ऊर्जावान होना चाहिए।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !