बंगाल की दुर्गा मूर्ति खास क्यों होती हैं, जानिए यहां

नवरात्रि पर हर राज्य में मां दुर्गा की खूबसूरत प्रतिमा के दर्शन होते हैं, लेकिन बंगाल में तैयार की जाने वाली दुर्गा प्रतिमा की ऐसी क्या खास बात है, जो हर बार ये चर्चा में रहती हैं। नवरात्रि में नौ दिनों तक पूरा देश मां दुर्गा की भक्ति में डूबा रहेगा। हर राज्य में इसे मनाने का अपना तरीका होता है। कहीं बड़ी-बड़ी मां दुर्गा की मूर्तियां (durga idol) सजेंगी तो कहीं इनके पंडालों को झांकी का रूप दिया जाएगा। यूं तो दुर्गा मां की मूर्तियां काफी खूबसूरत और देखने लायक होती हैं, लेकिन बंगाल में बनी दुर्गा मूर्तियों (special about durga murti of bengal) में ऐसा क्या खास होता है, जो इसे अन्य मूर्तियों से अलग बनाता है। आप भले ही दुर्गा पंडाल देखने के लिए बंगाल न जा पा रहे हों, लेकिन नवरात्रि के मौके पर हम आपको बता रहे हैं बंगाल की दुर्गा मूर्तियों की कुछ खास बातें। इसे जानने के बाद आपका मन जरूर एक बार बंगाल जाने को करेगा। 

आंखों को चढ़ावा-
यहां जो मूर्तियां बनती हैं, उनमें मां की आंखों का बहुत महत्व है। आंखों को चढ़ावा यहां की एक बहुत पुरानी परंपरा है, जो आज भी चली आ रही है। चोखूदान (chokhudan) यहां की पुरानी परंपरा है, जिसमें मां दुर्गा की आंखों (durga maa eyes) को चढ़ावा दिया जाता है। इन मूर्तियों या चाला नमूना को बनाने में 4 महीने का समय लगता है। वहीं दुर्गा की आंखों को अंत में बनाया जाता है। सबसे बड़ी बात ये है कि कलाकारों द्वारा दुर्गा की आंख केवल रात में ही बनाई जाती है। ये परंपरा केवल एक व्यक्ति द्वारा निभाई जाती है और अंधेरे में। हालांकि अब भी कुछ कलाकार हैं, जो अब इस प्रथा को भूलते जा रहे हैं, लेकिन कारीगर दुर्गा की आंखों को पूरा करके ही लोगों को चाला सौंपते हैं। 

तवायफ के कोठे के मिट्टी से बनती है दुर्गा प्रतिमा- 
यहां की मूर्तियों की सबसे खास बात है कि परंपरानुसार तवायफ के कोठे की मिट्टी (soil of red light area ) मिलाकर दुर्गा प्रतिमा तैयार की जाती है। कलाकारों का मानना है कि जब तक इस मिट्टी का इस्तेमाल मूर्ति में नहीं होता, मूर्ति पूरी नहीं मानी जाती। हालांकि पहले कारीगर रेड लाइट एरिया के घरों से भिखारी बनकर मिट्टी मांगकर लाते थे, लेकिन अब बदलते समय के साथ ही इस मिट्टी का भी कारोबार होने लगा है। इस मिट्टी को सोनागाछी की मिट्टी कहा जाता है। वैश्यालय की मिट्टी से बनी दुर्गा प्रतिमा की कीमत 5 से 15 हजार रूपए है। 

क्यों है ऐसी मान्यता-
सेक्स वर्कर (sex worker) के घर के बाहर की मिट्टी इस्तेमाल करने के पीछे मान्यता है कि जब कोई व्यक्ति ऐसी जगह पा जाता है तो उसकी सारी अच्छाई बाहर रह जाती हैं। उसी बाहर की मिट्टी को मूर्ति में इस्तेमाल किया जाता है। वहीं एक और मान्यता है कि एक वैश्या मां दुर्गा की परम भक्त थी। उसे समाज के तिरस्कार से बचाने के लिए मां दुर्गा ने उसे वरदान दिया था उसके यहां की मिट्टी का इस्तेमाल  जब तक उनकी प्रतिमा में नहीं किया जाएगा जब तक वह प्रतिमा अधूरी मानी जाती है।
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