बड़ी अजीब बात है कांग्रेस संसद में असम के एन आर सी प्रकाशन पर सरकार के विरोध कर रही है, और बाहर कांग्रेस की ओर से भी यह बात भी उछाली जा रही हैं, कि एनआरसी का प्रकाशन तो उनकी पहल का परिणाम है। बेहतर है कांग्रेस नेतृत्व पहले यह तय कर ले कि असम में घुसपैठियों के मसले पर वह चाहती क्या है? अगर वह एनआरसी के प्रकाशन का श्रेय लेना चाहती है तो इस बेतुके आरोप को वापस लेना चाहिए कि सरकार को यह नहीं पता कि असम में कितने घुसपैठिए हैं?
आखिर वह इस सामान्य से तथ्य से क्यों अनजान बनी रहना चाह रही है कि एनआरसी का प्रकाशन असम के वैध एवं अवैध नागरिकों का पता लगाने के उद्देश्य से ही किया गया है? अब यह भी साफ हो रहा है कि इस गंभीर मसले पर गैरजिम्मेदाराना राजनीति के मामले में कांग्रेस से दो हाथ आगे तृणमूल कांग्रेस दिखना चाह रही है। इस दल की मुखिया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आम लोगों को बरगलाने के साथ ही माहौल खराब करने वाला काम करती हुई दिख रही हैं।
मालूम नहीं क्या सोचकर ममता बनर्जी ने यह सवाल दागा कि अगर बंगाली बिहार के लोगों से यह कहें कि वे पश्चिम बंगाल में नहीं रह सकते या फिर दक्षिण भारतीय यह कहने लगें कि उत्तर भारतीय उनके यहां नहीं रह सकते तो क्या होगा? क्या इससे बेतुका सवाल और कोई हो सकता है? सवाल यह भी है कि क्या वह एनआरसी को अस्वीकार करके सुप्रीम कोर्ट की अवमानना नहीं कर रही हैं? क्या इससे खराब बात और कोई हो सकती है कि वह एनआरसी को लेकर देश में गृहयुद्ध छिड़ने का भी खतरा जता रही हैं?
नि:संदेह बात केवल कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस की ही नहीं, सपा, जद-एस, तेलुगु देसम और आम आदमी पार्टी की भी है, जिनके सांसदों ने एनआरसी को लेकर संसद परिसर में धरना दिया। क्या इन दलों के नेता अपने बर्ताव से यही जाहिर नहीं कर रहे कि उन्हें असम के दो करोड़ ८९ लाख नागरिकों से ज्यादा चिंता उन ४० लाख लोगों की है, जिनमें तमाम बांग्लादेशी घुसपैठिए साबित हो सकते हैं?
निश्चित ही यह एक राष्ट्रघाती राजनीति ही है कि वोट बैंक के लोभ में उन लोगों के कथित संवैधानिक अधिकारों की तो चिंता की जा रही जिनकी नागरिकता संदिग्ध है, लेकिन अपने नागरिकों के हितों की उपेक्षा की जा रही है। विपक्षी दलों के ऐसे रवैये से तो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की यह बात सही ही साबित होती है कि किसी में एनआरसी को अमल में लाने की हिम्मत नहीं थी। देश इस सच्चाई से अच्छी तरह अवगत भी है कि विभिन्न् दलों ने असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों के सवाल से मुंह चुराने का ही काम किया है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।