राकेश दुबे@प्रतिदिन। यह तो देश का दुर्भाग्य है की उसके पास वह सूची नहीं है जो यह बता सके कि भारत की आजादी की लड़ाई में किन वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी। शहीदों की ऐसी कोई सूची होने से या तैयार करने से केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इंकार किया है। आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में मंत्रालय का कहना है कि गृह मंत्रालय देश में न तो किसी व्यक्ति (जीवित या मृत) को शहीद घोषित करता है और न ही शहीदों की कोई अधिकारिक सूची ही तैयार करता है। दूसरी और मजेदार बात यह है कि, भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) द्वारा ‘डिक्शनरी ऑफ मारटियर्स: इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल (1857 से 1947)’ के अब तक पांच संस्करण प्रकाशित कर दिए गए हैं, जबकि उनके पास भी शहीदों की कोई सूची नहीं है।
इस सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि आरटीआई के तहत सूचना पाने के इच्छुक आवेदक को बीते तीन साल से केंद्र सरकार के किसी विभाग से शहीदों की सूची नहीं मिल सकी है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट एच सी अरोड़ा ने वर्ष 2015 में भारत सरकार द्वारा बनाई गई शहीदों की सूची की मांग करते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय को आरटीआई के तहत आवेदन किया गया। इस पर गृह मंत्रालय (स्वतंत्रता सेनानी डिवीजन) ने साफ कर दिया कि मंत्रालय ऐसी कोई सूची बनाने या किसी को शहीद घोषित किए जाने की प्रक्रिया से जुड़ा हुआ नहीं है और इस बारे में जानकारी देने के लिए आवेदन को भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार में स्थानांतरित किया जा रहा है।
एडवोकेट अरोड़ा ने ऐसा जवाब मिलने के बाद 25 मार्च,2018 को केंद्रीय गृह मंत्रालय, पंजाब और हरियाणा के मुख्य सचिवों को लीगल नोटिस भेज दिया, जिस पर 3 मई, 2018 को केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंडर-सेक्रेटरी आरपी सत्ती ने जवाब दिया। एडवोकेट अरोड़ा के मुताबिक, गृह मंत्रालय की ओर से लीगल नोटिस के जवाब में कहा गया कि भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) जो कि केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की एक स्वायत्त इकाई है, ने संस्कृति मंत्रालय के साथ मिलकर एक प्रोजैक्ट ‘डिक्शनरी आफ मारटियर्स: इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल (1857 से 1947)’ पर काम शुरू किया है। इसके तहत अब तक शहीदों की इस डिक्शनरी के पांच संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।
चूंकि गृह मंत्रालय शहीदों की कोई सूची तैयार या बनाए नहीं रखता, इसलिए तत्काल यह मामला उचित कार्रवाई करने और उचित उत्तर देने के लिए आईसीएचआर को भेजा जा रहा है। आवदेक को अब आईसीएचआर के जवाब का इंतजार है। आखिर सरकार में कोई यह जिम्मेदारी लेने को तैयार क्यों नहीं है ? राजनीतिक दल जिनके नाम चुनाव से लेकर सब कुछ करते है उनका कोई पता ठिकाना न होना शर्म की बात है। सरकार को स्वमेव इस विषय पर कार्रवाई करना चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।