राकेश दुबे@प्रतिदिन। यह एक गम्भीर प्रश्न है की संसद में हंगामा क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है ? अब समय आ गया है सब मिलकर इस सवाल का हल ढूंढे। प्रतिपक्ष में भाजपा रही हो या कांग्रेस सबका व्यवहार संसद को न चलने देने का होता जा रहा है। राष्ट्र और राष्ट्र के नागरिकों के प्रति जवाबदेही का भाव समाप्त होता दिख रहा है। ऐसा कब तक चलेगा ? अब कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा गुजरात चुनाव अभियान में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर की गई टिप्पणी को मुद्दा बनाये हुए है। कभी कुछ तो कभी कुछ मुद्दा लेकर संसद ठप्प करना एक परम्परा बनती जा रही है। देश की पहचान एक ठप्प संसद के रूप में बनती जा रही है, सत्र आहूत करने के पूर्व कार्य मन्त्रणा समिति की सहमति का कोई अर्थ नहीं रह गया है। अब इसे एक नया बहाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहा जा रहा है, जो इस श्रेणी में न आकर साफ-साफ अपने दायित्वों से मुकरना अर्थात कर्तव्य विमुखता है।
इस बार सदन न चलने देने के पीछे कांग्रेस की मांग है कि प्रधानमंत्री उन बातों के लिए क्षमा मांगे, जो जुमलों के रूप चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने 10 वर्ष तक प्रधानमंत्री पद पर रहे डॉ मनमोहन सिंह के लिए कहे थे। ये जुमले डॉ सिंह की राष्ट्रनिष्ठा पर प्रश्न चिन्ह है। कांग्रेस यह भी कह रही है कि अगर मनमोहन सिंह ने देश विरोध काम किया है तो सरकार प्राथमिकी दर्ज कराए। कांग्रेस को मनमोहन सिंह के पक्ष में आवाज उठाने तथा इसके लिए प्रधानमंत्री का विरोध करने का पूरा अधिकार है। शायद भाजपा उसकी जगह होती तो वह भी विरोध करती, किंतु संसद के अंदर विरोध और सड़क के विरोध के बीच गुणात्मक अंतर है। इस बात को सभी राजनीतिक दलों को समझना चाहिए।
इन्हीं सांसदों ने संसद में विरोध की मर्यादा और उसके लिए संसद के नियम और परंपराएं बनाई हैं। कांग्रेस सबसे ज्यादा समय तक देश पर राज करने वाली पार्टी रही है और अब भाजपा कमोबेश पूरे देश में राज करने वाली पार्टी है। इन दोनों का आचरण संसदीय गरिमा के अनुरूप होना चाहिए। संसद के हंगामे और गतिरोध से देश में राजनीति के प्रति वितृष्णा पैदा हो रही है। देश का हर नागरिक चाहता है कि संसद की कार्यवाही उसकी निर्धारित भूमिका के अनुरूप चले। कांग्रेस भी जानती है कि प्रधानमंत्री माफी मांगने वाले नहीं हैं। ऐसे में इस बात पर अड़ना कि उसके बगैर हम मानेंगे ही नहीं, वास्तव में संसद के इस सत्र का गला दबाना ही होगा?
संसद बहस, विमर्श और विधेयक पारित करने के लिए है। यही उसकी निर्धारित भूमिका है। बहस में आपको जितना जोरदार विरोध करना है करिए, विमर्श में अपनी असहमति दर्ज कराइए, लेकिन अगर कार्यवाही ही नहीं चलेगी तो फिर ये होगा कैसे यह भी विचार कीजिये। हंगामों और विरोध के कारण संसद का लगातार ठप्प होना हमारे लोकतंत्र को ही पंगु बनाने जैसा है। दोनों सदनों के सभापतियों ने नेताओं के साथ औपचारिक बैठक कर रास्ता निकालने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए। सरकार की ओर से अब यह भी बयान आया है कि उन्होंने विपक्ष के नेताओं से बातचीत की है। वास्तव में सरकार को भी इसमें सघन पहल करनी चाहिये। वह विपक्ष के नेताओं को इस बात के लिए मनाए कि वे संसद को चलने दें। संसद आपके संसदीय दायित्वों के निर्वहन के लिए है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार मांगने का आपको तभी हक है, जब आप कर्तव्यों का निर्वहन पूर्ण रूप से करते हों।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।