एकांगी हो जाएगी देश की राजनीति, सोचिये !

राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश की राजनीति एकांगी होती जा रही है, यह धारणा समाप्त हो चली है कि आगामी 2019 के लोक सभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी को रोकने के लिए नितीश कुमार का इस्तेमाल विपक्ष कर सकेगा। नितीश कुमार से ज्यादा उपयुक्त कोई दूसरा विश्वसनीय चेहरा विपक्षी खेमे में नहीं था।  बावजूद इसके की उनकी पार्टी जनता दल (यू) की बिहार से बाहर कोई पहचान और जनाधार नहीं है। फिर भी कुशल प्रशासक के साथ-साथ उनका बेदाग चेहरा छिटके हुए विपक्ष को एकता के सूत्र में पिरोने की संभावनाओं को जगाए हुए था। नितीश के एनडीए में शामिल होने से इस संभावना पर पूरी तरह पानी फिर गया है।

अब पूरे विपक्ष में सन्नाटा पसरा है। बराए नाम कांग्रेस देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन उसके नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में वह गुण अब तक नहीं दिखा जिसे राष्ट्रीय नेतृत्व के रूप में पहचाना जा सके। कांग्रेस में यह बात नीचे तक घर कर गई है की कांग्रेस में राहुल के अलावा कोई दूसरा नेता ही नहीं है, लेकिन यह पार्टी का दुर्भाग्य ही है कि उसमे एक भी ऐसा व्यक्तित्व नही बचा है जो गांधी-नेहरू परिवार को चुनौती देने की कोई हिम्मत जुटाए।

दूसरी ओर ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल भाजपा और नरेन्द्र मोदी के मुखर आलोचक रहे हैं, लेकिन ममता भाजपा की ओर से लगातार मिलने वाली चुनौतियों से अपने घर में ही घिर गई हैं, और केजरीवाल पंजाब और दिल्ली निकायों के चुनावों में मिली हार से अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। ऐसे में नितीश कुमार के फैसले से नाराज चल रहे शरद यादव से विपक्ष उम्मीद लगाए हुए है, परन्तु शरद यादव के साथ न तो अपनी पार्टी है और न जनाधार। शरद यादव का प्रयोग विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच एकता कायम करने के संवाद-सूत्र के रूप में हो सकता है। यह भी विचारणीय मुद्दा है कि शरद यादव राजनीति की धुरी बनेगे या परिधि में रहकर, अपने तेवर के विपरीत कुछ करेंगे। अभी तो मुश्किल लगता है कि वे अपनी पार्टी छोड़कर इस नई भूमिका में आना चाहेंगे।

दूसरे स्वीकार्य व्यक्तित्व के एन गोविन्दाचार्य हो सकते है, पर वे अपने तरीके से परिवर्तन की राह के राहगीर हैं। लोकतंत्र को कायम रखने के लिए छिटके हुए विपक्षी राजनीतिक दलों का यह कर्त्तव्य बनता है कि आपसी मतभेद, स्वार्थ और अहंकार को छोड़कर, एक नेतृत्व चुने और एक साझा  राजनीतिक मंच बनाये। एकांगी राजनीति में सबसे पहले लोकतंत्र का संतुलन समाप्त होता है, फिर देश दिशाहीन होने लगता है, उसके बाद ....!

यह समय सत्ता और विपक्ष दोनों के लिए सोचने का है। राजनीति कैसी हो ? जिससे देश का लोकतान्त्रिक स्वरूप जीवित रह सके। सोचिये।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !