सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: प्राइवेसी मौलिक अधिकार घोषित

नई दिल्ली। तीन तलाक के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आज फिर एक बड़ा फैसला सुनाया है। इसके तहत किसी भी व्यक्ति की प्राइवेसी उसका मौलिक अधिकार है। बता दें कि भारत के संविधान में नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार दिए हैं। इनका हनन किसी भी स्थिति में नहीं किया जा सकता। आपकी मर्जी के बिना आपका फोन टेप किया जाना, आपके रूम या बेडरूम में कैमरा लगाना या आपकी मर्जी के बिना आपकी फोटो का उपयोग करना, उपरोक्त सभी और ऐसे सैंकड़ों मामले निजता के हनन के तहत माने जाएंगे। 

नौ जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताया है। पीठ में मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर, जस्टिस जे. चेलमेश्वर, जस्टिस एस.ए. बोबडे, जस्टिस आर.के. अग्रवाल, जस्टिस आर.एफ़. नरीमन, जस्टिस ए.एम. सप्रे, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर शामिल हैं।

संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत
पीठ ने कहा कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, संविधान पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के उन दो पुराने फ़ैसलों को ख़ारिज कर दिया जिनमें निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना गया था। 1954 में एमपी शर्मा मामले में छह जजों की पीठ ने और 1962 में खड़ग सिंह केस में आठ जजों की पीठ ने फ़ैसला सुनाया था।

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने फ़ैसला आने के बाद मीडिया से कहा, 'सरकार ने आधार कानून बनाया है जिसमें समाज कल्याण की योजनाओं के लिए आधार की जानकारी देना ज़रूरी है। इस पर भी विचार किया जाएगा। अगर सरकार रेल टिकट और फ़्लाइट टिकट और दूसरी चीजों में भी आधार को ज़रूरी बनाती है तो इसके ख़िलाफ भी आवाज़ उठाई जाएगी।

इसके पहले, जुलाई में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निजता का अधिकार संपूर्ण अधिकार नहीं है और इस पर राजसत्ता कुछ हद तक तर्कपूर्ण रोक लगा सकती है। मामले की सुनवाई कर रही संविधान बेंच ने यह सवाल किया था कि आखिर निजता के अधिकार की रूपरेखा क्या हो?

निजता की बहस
निजता के अधिकार को लेकर बहस तब तेज़ हुई जब सरकार ने आधार कार्ड को ज़्यादातर सुविधाओं के लिए ज़रूरी बनाना शुरू कर दिया। आधार को क़ानूनी तौर पर लागू करने की कोशिश कर रही केंद्र सरकार के वकीलों ने कोर्ट ने निजता के अधिकार की मौलिकता पर ही सवाल खड़ा कर दिए। सुप्रीम कोर्ट में 2015 में सरकारी वकीलों की तरफ़ से तर्क दिया गया कि ये हो सकता है कि आधार लोगों की निजता में दखल देता हो, लेकिन क्या निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है? सरकार का तर्क था कि इस बारे में कभी भी अदालत ने कोई फैसला नहीं दिया और संविधान में भी इस बारे में स्पष्ट कुछ लिखा नहीं है। उस समय इस मामले की सुनवाई तीन जज कर रहे थे। उन्होंने सरकारी वकील की दलील मान ली और इस पर फैसला लेने के लिए मामले को संविधान पीठ के हवाले कर दिया था।

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