जड़ होता “INDIA’ और सदा से SMART ‘भारत”

राकेश दुबे@प्रतिदिन। वैसे यह समग्र “भारत” की तस्वीर नहीं है, पर “भारत” में पनप रहे “इण्डिया” की तस्वीर है। यह “इण्डिया” आलसी लोगों से भरा है जो अपने लिए भी चलना नही चाहते। स्मार्टफोन रखने वाले इण्डिया में आम आदमी को बीमारी मोल लेना पसंद है,पर चलने से परहेज है। वो निवाले गिनता है, कदम गिनता है। इसके विपरीत “भारत” में ऐसा नहीं है, गाँव में निवाले गिनना और कदम गिनना दोनों गलत कहे जाते हैं। मन से खाना और मन से चलना गाँव [भारत] में आज भी मौजूद है। “इण्डिया” [महानगर] में मजबूरी में जो मिले खाना, मजबूरी में पैदल चलना, आम बात है।

स्मार्टफोन से ही आये इस सर्वे के नतीजे कहते है की इण्डिया के लोग एक दिन में 5 हजार से भी कम चलते हैं। “भारत” तो महानगरों को छोडकर बना है, उसमे स्मार्ट फोन नही है वहां का सर्वे आया भी नहीं है लेकिन भारत में चहलकदमी ज्यादा होती है, इसमें कोई दोराय नहीं है।  स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी ने 46 देशों के 7 लाख लोगों का सर्वे किया और पता लगाने की कोशिश की कि कहां के लोग हर दिन औसतन कितने कदम चलते हैं। इसके लिए लोगों के स्मार्टफोन में इन्स्टॉल किए गए स्टेप काउन्टर्स की मदद से उनकी वॉकिंग ऐक्टिविटी को ट्रैक किया गया और इस आधार पर एक रैंकिंग तैयार की गई।

पता चला कि सबसे ऐक्टिव चीनी हैं, उनमें भी खास तौर पर हांगकांग के लोग हैं, जो एक दिन में औसतन 6880 कदम चलते हैं। सबसे निचले पायदान पर इंडोनेशिया रहा, जहां लोग औसतन 3513 कदम चलते हैं। भारत 39 वें स्थान पर है, यानी पेंदी से जरा ऊपर। हम भारतीय औसतन एक दिन में 4297 कदम चलते हैं।

यह कह सकते हैं कि यह सर्वेक्षण अधूरा है क्योंकि इसमें सिर्फ ”इण्डिया“ के  स्मार्टफोन वालों को शामिल किया गया है। हमारे यहां गांवों में आज भी लोग जबर्दस्त परिश्रम करते हैं। चलते रहना उनकी आदत में शामिल है। वहां गिन कर चलने और गिन कर खाने की आदत नहीं है, लेकिन स्मार्टफोन रखने वाले तबके को भी इतना छोटा न समझें। इसमें महानगरों से लेकर गांवों तक, उच्च वर्ग से लेकर निम्न मध्यवर्ग तक सभी शामिल हैं। यह सर्वे उन सबके रहन-सहन और स्वास्थ्य पर गहरा रहे संकट की ओर इशारा करता है।

इस दौर के सामाजिक-आर्थिक विकास ने कई सहूलियतें पैदा की हैं, तो कई समस्याओं को भी न्योता दिया है। समृद्धि बढ़ने के साथ हर जगह लोगों का कार रखना आम बात है। पहले लोग खरीद-फरोख्त और मनोरंजन के लिए दूर-दूर निकल जाते थे, अब ऐसे सभी कामों के लिए कार से जाते हैं। बाजार खुद घर के भीतर तक आ पहुंचा है। ऑनलाइन शॉपिंग की सुविधा मिलने के बाद खरीदारी के लिए बाहर जाने की जरूरत ही नहीं रह गई है। खाना तक घर पहुंचाया जा रहा है। ऐसे में चलने-फिरने का कोई दबाव किसी पर नहीं है। नतीजा यह है कि डायबिटीज, डिप्रेशन और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं। इण्डिया के लोग भले ही स्मार्टफोन रखकर,कदम गिन कर  चलने , रोटी के निवाले गिनकर खाने की मशक्कत करते हों। पर “इन सबको बिना गिने करने वाला ‘भारत”आज भी सेहत के मामले में “स्मार्ट” है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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