
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एपीजे अब्दुल कलाम की दूसरी पुण्यतिथि पर रामेश्वरम में कलाम मेमोरियल का उद्घाटन किया था। डीएमके समेत कई राजनीतिक पार्टियों ने मेमोरियल में वीणा बजाते हुए कलाम की मूर्ति और उसके पास भगवद्गीता के श्लोक लिखवाए जाने पर विरोध दर्ज कराया है। विरोधियों का कहना है कि कलाम की प्रतिमा के पास सभी धर्मों के महान ग्रन्थों के अंश होने चाहिए। कलाम साहब, ने कभी ऐसा सोचा नहीं होगा। उनका सारा चरित्र “देश प्रथम” में समाहित है।
बिहार के नवगठित एनडीए सरकार के विश्वास मत के दिन विधानसभा परिसर में 'जय श्रीराम' का नारा लगाने वाले अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री खुर्शीद फिरोज अहमद को इमारत-ए-शरिया के मुफ्ती सुहैल अहमद कासमी ने इस्लाम से बेदखल करने का फतवा जारी किया। फतवे के अनुसार मंत्री का निकाह भी रद्द कर दिया गया। उधर, मंत्री ने बढ़ते विवाद के बाद माफी मांगी। यह क्या दर्शाता है ? कल इसी विषय पर एक टीवी चैनल पर बहस के दौरान एक मौलाना ने एंकर के खिलाफ सार्वजनिक रूप से वह सब कह डाला जिसकी जरूरत भारतीय समाज में ओछापन की संज्ञा पाता है।
इस्लाम में नफरत की जगह नहीं है। राम के साथ रहीम को पूजने वाले इस देश में अनेक लोग हैं। राम को पूजे या रहीम को पूजे यह हर एक व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है, पर सबको कलाम साहब की तरह याद रखना चाहिए- “देश प्रथम”। पहले पूजा या पहले नमाज़ के पहले समाज को तरजीह देना चाहिए। इसी समाज से देश बना है, भारत कहे या हिंदुस्तान, यही हम सबकी पहचान है। देश प्रथम बाकी सब बाद में।
इससे भी ज्यादा खतरनाक प्रवृति किसी भी एक महान आत्मा के साथ दूसरी महान आत्मा की तुलना है। यह भी गलत है। धर्म, जाति, सम्प्रदाय से उपर उठकर इस बात पर विचार करें और अपने उद्गार प्रकट करने के पूर्व उस महान आत्मा का देश के प्रति समर्पण याद करें। देश प्रेम को अपना धर्म बनाये।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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