काला धन: अभी कुछ और करना होगा

राकेश दुबे@प्रतिदिन। यह सही है कि केंद्र सरकार और उसकी मशीनरी  काले धन से निपटने की दिशा में गंभीरता से प्रयास कर रही है, लेकिन इसके साथ ही साथ कुछ चौकसी बरतने की भी आवश्यकता है कि कहीं जांच और प्रवर्तन पर अत्यधिक जोर देने के चलते काले धन की जड़ पर प्रहार करने संबंधी अन्य अहम और जरूरी कदम छूट न जाएं। प्रभावी प्रवर्तन या सक्षम जांच एक सीमा तक ही उपयोगी साबित हो सकती है। कर वंचना के मामलों का पता लगाना अथवा कर वंचकों के खिलाफ कदम उठाना काले धन का पता लगाने में कुछ हद तक ही मददगार हो सकता है। 

हालांकि इसका असर भी समय-समय पर घोषित की जाने वाली माफी योजनाओं के चलते कमजोर पड़ जाता है। ये योजनाएं कर वंचकों को पाकसाफ निकलने का मौका देती हैं। जाहिर है कर वंचना करने वालों का प्रोत्साहन समाप्त करने के लिए अभी काफी कुछ किया जाना है। 

सरकार को कम दरों वाली एक सामान्य और स्थिर कर व्यवस्था लागू करनी चाहिए। यहां सरकार का इरादा राजस्व विभाग के वास्तविक नियमों और उनके प्रवर्तन से मेल खाता हुआ होना चाहिए। उदाहरण के लिए जनरल एंटी-अवॉयडेंस रूल्स (गार) और प्लेस ऑफ इफेक्टिव मैनेजमेंट (पीओईएम) व्यवस्था की मदद से देश की कर व्यवस्था को अत्यधिक पारदर्शी, साधारण और विवेकाधिकार मुक्त हो जाना था।

देश का उद्यमी जगत पहले ही गार और पीओईएम के नियम निर्माण को लेकर संदेह कर रहा है। इसी प्रकार जीएसटी में पांच दरों की व्यवस्था की गई है। इससे विभिन्न वस्तुओं के लिए दरें तय करने को लेकर मनमानेपन और कुछ खास क्षेत्रों के साथ अनुकूल बरताव के लिए लॉबीइंग की आशंका पैदा हो गई है। हालांकि कर दरों को कम करने का एक प्रयास किया गया लेकिन रियायतों को समाप्त करने की दर बहुत धीमी रही है। कर अधिकारियों को कर दाताओं के अनुकूल और उनसे मित्रवत बनाने संबंधी कर सुधार अभी भी दूर की कौड़ी है। चूंकि अनेक विशेषज्ञ समितियों ने ये लक्ष्य हासिल करने के लिए कई उपाय सुझाए हैं इसलिए सरकार के पास विचारों की कमी नहीं है। केवल क्रियान्वयन की इच्छाशक्ति की दरकार है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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