भोपाल। मप्र में डेंगू का प्रकाप बढ़ता जा रहा है और इसी के साथ तेजी से बढ़ रहा है मेडिकल माफिया का धंधा। इसमें कोई दो राय नहीं कि डेंगू एक खतरनाक बीमारी है परंतु डेंगू का डर उससे भी कहीं ज्यादा खतरनाक है जो लोगों के दिलों में बिठाया जा रहा है। ज्यादातर डॉक्टर्स मरीज को डेंगू का डर दिखाकर रैफर कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि डॉक्टर्स को डेंगू रेफरल पर 10000 रुपए तक कमीशन मिल रहा है।
- सरल शब्दों में समझिए
- भोपाल, इंदौर, ग्वालियर एवं जबलपुर में कुछ चुनिंदा बड़े और प्राइवेट हॉस्पिटल हैं।
- इन अस्पतालों ने प्रदेश भर के जिलों और तहसीलों में स्थित सरकारी अस्पतालों पर फोकस कर लिया है।
- सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों से डील फिक्स हो गई है।
- जैसे ही कोई मरीज सरकारी अस्पताल में पहुंचता है तो डॉक्टर यह नहीं देखते कि डेंगू है या नहीं, है तो किस स्थिति में है और क्या उसका इलाज किया जा सकता है ?
- डॉक्टर यह देखते हैं कि परिजनों के चेहरे क्या बोल रहे हैं। वो कितने घबराए हुए हैं या कितना खर्चा कर सकते हैं।
- उसके बाद डॉक्टर्स मरीज को अपने चंगुल में फंसाना शुरू करते हैं।
- यह जानते हुए भी कि मरीज को डेंगू नहीं है, वो डेंगू की संभावना का डर दिखाते हैं और अच्छे इलाज के लिए प्राइवेट अस्पताल की ओर रैफर कर देते हैं।
- इन अस्पतालों में एक भले चंगे व्यक्ति की डेंगू जांच के नाम पर कम से कम 50000 रुपए का बिल तो बनता ही है।
- इस बिल में 10000 रुपए उस डॉक्टर को मिलता है जिसने मरीज को दहशतजदा बनाकर रैफर किया था।
- डॉक्टरों की इस काली कमाई पर रोक लगाने के लिए सरकार कोई उपाय नहीं करती।
- रिकार्ड उठाकर देख लीजिए, डॉक्टरों के यहां ना तो लोकायुक्त के छापे पड़ते हैं और ना ही इंकम टैक्स के।
सरकार भी दे रही है साथ
जाने अनजाने मप्र सरकार भी मेडिकल माफिया का साथ निभाती है। हाल ही में शिवराज सिंह चौहान ने डेंगू के संदर्भ में एक आपातकालीन मीटिंग ली है। इस मीटिंग का जोर शोर से प्रचार किया जा रहा है। इस तरह की खबरें लोगों को दहशतजदा करतीं हैं। उन्हें लगता है कि डेंगू एक बड़ा प्रकोप बनकर आया है। ऐसी खबरों से अस्पतालों के हालात नहीं बदलते, परंतु प्राइवेट अस्पतालों में भीड़ जरूर बढ़ जाती है।