कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं की उम्मीद प्रियंका गांधी ने अपने एक भाई राहुल गांधी को सपोर्ट करने के लिए भारत की पांच विधानसभा सीटों पर 'हर बूथ मजबूत' अभियान का ऐलान किया है। इन पांच सीटों में से एक सीट वह है जहां से मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष श्री नरेंद्र सिंह तोमर, निर्वाचित होकर आए हैं। सवाल तो बनता ही है कि क्या बहन ने अपने दूसरे भाई ज्योतिरादित्य सिंधिया को यह अभियान गिफ्ट किया है?
प्रियंका गांधी का हर बूथ मजबूत अभियान क्या है
कांग्रेस पार्टी के नेता श्री राहुल गांधी ने भारतीय चुनाव प्रक्रिया में उस गड़बड़ी की खोज की है, जो सन 1971 में रायबरेली सीट के चुनाव में प्रमाणित हो गई थी। "वोट चोरी" के चलते इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया था। उनको 6 साल के लिए चुनाव से प्रतिबंधित कर दिया था। बदले में इंदिरा गांधी ने भारत में इमरजेंसी लगा दी थी। पार्टी कोई भी हो वोट चोरी तब से अब तक लगातार चली आ रही है, बस तरीका बदल रहे हैं। जब कांग्रेस पार्टी के नेता श्री दिग्विजय सिंह, EVM के बदले वैलेट पेपर से चुनाव की मांग करते हैं तो, असल में वह अपने वोट चोरी के अधिकार की मांग करते हैं, क्योंकि उनको वैलेट पेपर से चुनाव में ही वोट चोरी करना आता है।
अब जबकि राहुल गांधी ने वोट चोरी की खोज कर ली है तो प्रियंका गांधी ने अपने प्यारे भैया को सपोर्ट करने के लिए हर भूत मजबूत अभियान का ऐलान किया है। इसके तहत भारत की पांच विधानसभाओं का चुनाव किया गया है। विधानसभा क्षेत्र में 20-20 बूथों के कलस्टर बनाए जाएंगे। हर कलस्टर बूथ रक्षक नियुक्त किया जाएगा। बूथ रक्षक को प्रियंका गांधी की टीम ट्रेनिंग देंगी। बूथ रक्षक अपने कलस्टर की बूथ समितियों के सदस्यों को गाइड करेगा। बूथ रक्षक ये सुनिश्चित करेंगे कि किस मतदान केन्द्र पर कितने मतदाताओं के नाम गलत जुडे़ हुए हैं। पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव की वोटर लिस्ट में चुनाव के दो महीने पहले काटे, जोड़े गए नामों का एनालिसिस करेंगे। बूथ रक्षक बीएलओ के साथ ये सुनिश्चित करेंगे कि एक भी सही वोटर मतदाता सूची से न छूटे और एक भी गलत नाम वोटर लिस्ट में शामिल न रहे।
कुल मिलाकर कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता विधानसभा क्षेत्र का ऑडिट करेंगे और यह टीम डायरेक्ट प्रियंका गांधी की टीम को रिपोर्ट करेगी। इस आधार पर निष्कर्ष निकाला जाएगा कि कितने वोट चोरी किए गए और जीत हार का अंतर कितना था। यदि वोट चोरी नहीं होते तो क्या कांग्रेस पार्टी जीत जाती। निष्कर्ष के आधार पर ऐसा डाटा तैयार किया जाएगा जो राहुल गांधी के प्रेजेंटेशन में काम आएगा।
प्रियंका के अभियान का सिंधिया से क्या कनेक्शन
सब जानते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रियंका गांधी के मुंह बोले भाई हैं। वह जब भी शॉपिंग करती थी अपने दोनों भाइयों के लिए एक साथ करती थी। पर्दे की पीछे की राजनीति को समझने वाले यह भी जानते हैं कि प्रियंका गांधी आज भी लगातार कोशिश कर रही है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया, कांग्रेस में वापस आ जाएं और उनका विश्वास है कि जिस दिन कांग्रेस पार्टी पावरफुल पोजीशन में आ जाएगी, ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने घर वापस लौट आएंगे। निश्चित रूप से इस विश्वास का कोई आधार भी होगा।
प्रियंका का अभियान, सिंधिया को गिफ्ट कैसे हो सकता है
ग्वालियर चंबल क्षेत्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने नरेंद्र सिंह तोमर एकमात्र शेष बची चुनौती है। इस अभियान के माध्यम से नरेंद्र सिंह तोमर पर कलंक लगाया जा सकता है, कमजोर किया जा सकता है और अगले चुनाव में उनका टिकट कटवाया जा सकता है। इसका सीधा फायदा कांग्रेस को नहीं मिलेगा, क्योंकि दिमनी विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस और भाजपा के वोटो का अंतर 1 लाख से अधिक है, लेकिन सिंधिया को जरूर मिलेगा। इस प्रकार प्रियंका के अभियान में चार सीट राहुल गांधी के लिए और एक सीट सिंधिया के लिए।
ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह वाले प्रसंग का मैसेज
सिंधिया जो भी करते हैं, उसके पीछे कोई ना कोई कारण जरूर होता है। पिछले दिनों जब सिंधिया ने भोपाल के एक प्राइवेट कार्यक्रम में दिग्विजय सिंह का हाथ पकड़ कर उन्हें मंच पर बिठाया तो इसका एक क्लियर मैसेज था, "यदि आप मुझे स्वीकार कर लो तो मैं आपको पूरा सम्मान दूंगा"। इस प्रकार के प्राइवेट इवेंट में जब दो विरोधी नेताओं को शामिल होना होता है तो दोनों अपने आने जाने का समय अलग रखते हैं ताकि एक दूसरे का सामना ना हो। क्या आप इसे इत्तेफाक कह सकते हैं कि, भोपाल के प्राइवेट इवेंट में दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया एक ही समय पर उपस्थित थे।
ताजा घटनाक्रम और उसके मायने
- कैबिनेट की बैठक में मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर ग्वालियर की दुर्दशा को लेकर मचल उठे। तुलसी सिलावट ने उनको सपोर्ट किया। यह सब कुछ मुख्यमंत्री के सामने अकेले में भी हो सकता था लेकिन जानबूझकर बैठक में किया गया ताकि सिंधिया के लिए ग्राउंड क्लियर किया जा सके।
- इस असंतोष की खबरों को आधार बनाकर सिंधिया ने हाई कमान को समझाया कि, परिस्थितियों नियंत्रण से बाहर जाने वाली है। मैं जाकर उनको कंट्रोल करता हूं, सबको मोटिवेट करके आता हूं।
- फिर सिंधिया का ग्वालियर चंबल का दौरा हुआ और उसमें क्या कुछ हुआ सबको पता है।
- ग्वालियर की मीटिंग से लेकर मुरैना के रोड शो तक, हर इवेंट का टारगेट केवल एक ही था।
- इसके बाद मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव, नरेंद्र सिंह तोमर से मिलने गए, ताकि मैसेज क्लियर किया जा सके की शक्ति का संतुलन है।
- सेलिब्रिटी के धमाकेदार इवेंट के बाद भोपाल में संगठन की समन्वय बैठक भी हुई। उसके फोटो भी जारी करवाए गए ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत काम आवे।
बिना चुनाव के ग्वालियर चंबल में इतने बड़े कार्यक्रम की क्या जरूरत थी?
दिग्विजय सिंह का पॉडकास्ट तो याद होगा आपको जिसमें उन्होंने बताया था, सिंधिया ने विचारधारा के लिए नहीं पर्सनल एजेंडा के लिए कांग्रेस पार्टी छोड़ी थी। जिस एजेंडा के लिए उन्होंने कांग्रेस जैसी पार्टी छोड़ी, क्या कोई उम्मीद कर सकता है कि भाजपा में शामिल होने के बाद उन्होंने अपना एजेंडा छोड़ दिया होगा। मुद्दा अभी भी वही है, ग्वालियर चंबल पर सिंधिया का एकाधिकार। वह सांसद भले ही गुना शिवपुरी के हैं लेकिन ग्वालियर और चंबल में भी दरबार लगाएंगे और सबको आना पड़ेगा। ग्वालियर और चंबल के फैसले वल्लभ भवन में नहीं बल्कि जय विलास पैलेस में होंगे। ✒ उपदेश अवस्थी।