खुलाखत: श्रीमान इन दिनों शिवपुरी के डीपीसी सिंघम के रूप में चर्चा में है। पर सिंघम फ़िल्म लगभग सभी ने देखी है और सिंघम एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ कर्मचारी का पर्याय बन गया है जो समाज में गन्दगी बर्दास्त नहीं करता। सिंघम के पात्र की खासबात यह थी की उसने मज़बूर और गरीब को कभी सताया नहीं और ना ही अपराधियों और बाहुबलियों को बचाया और शरण दी। इसके अलावा उसने किसी के अपराध को अपने फायदे के लिए उपयोग किया।
अब डीपीसी शिरोमणि दुबे की बाज़ीगरी का खेल देखिये मोबाईल मॉनिटरिंग में विद्यालय से एक दिन अनुपस्थित शिक्षकों के नाम पेपर में छापे जाते है और 7 दिन का वेतन काट दिया जाता है। पर मोटी मुर्गी का नाम पेपर में नहीं आता ,उस संबधित विद्यालय और संकुल का नाम पेपर में नहीं आता। इसका साक्षात् उदाहरण है दिनांक 09 सितम्बर में छपी खबर। 8 तारीख को मोबाइल मॉनिटरिंग में 6 शिक्षक पकड़ में आये जिनमें से 5 शिक्षकों के नाम पेपर में छापे गए और उनका 7 दिन का वेतन काटने की कार्रवाई की जाने की खबर भी छपी।
छटवीं एक शिक्षिका थीं जो एक वर्ष से विद्यालय नहीं गई। पिछले एक वर्ष से मोबाइल मॉनिटरिंग में कभी उस विद्यालय को फोन क्यों नहीं लगाया गया।
चलो श्रीमान सिंघम ने उन शिक्षिका को कड़ी मेहनत के बाद पकड़ लिया। पर उनका नाम, उनके विद्यालय का नाम और उस संकुल प्राचार्य का नाम पेपर में क्यों नहीं छपवाया जो प्रथम द्रष्टया दोषी है। जबकि उस शिक्षक का नाम छपा है जिसका मोबाइल बंद था या जो फ़ोन नहीं उठा पाया। हो सकता है वो निर्दोष हो। पेपर की कटिंग संलग्न है। क्या कोई और बात तो नहीं है एक साल का अवैध भुगतान। विद्यालय के प्रभारी और वेतन आहरण अधिकारी का मामले में फसा होना मामले को मलाईदार बना देता है।
तो अब क्या कहें सिंघम या बाज़ीगर। सबसे आश्चर्य इस बात के इतने उजागर होने पर भी शासन के वरिष्ठ नुमाइंदे खामोश है। क्यों।
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