रमेश राठौर/भोपाल। कल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने IAS अधिकारियों के अधिवेशन में उनके अहंकार मिटाने, समाज की सेवा करने की बाते कहीं। IAS अधिकारियों का अहंकार तब तक नहीं मिटेगा जब तक कि IAS अधिकारियों को बनाने वाली और बैठाने वाली जो व्यवस्था है उसमें परिवर्तन नहीं होगा।
भारतीय प्रशासनिक सेवा वह सेवा है जो अंग्रेजों के समय से चली आ रही हैं। अंग्रेजों ने ग्रामों, नगरों, शहरों से राजस्व लगान वसूली के लिए हर जिले में एक कलेक्टर नियुक्त किया था। उस समय कलेक्टर ज्यादातर लोग अंग्रेज ही हुआ करते थे। उनका नाम कलेक्टर इसलिए पढ़ा कि जब ये कलेक्टर लगान कलैक्ट करने के लिए जब घोड़े पर बैठकर लगान वसूलने के लिए गांवों में जाते थे और वो कहते थे कि मै लगान कलैक्ट करने के लिए आया हुं तो लोगों ने भारतीय प्रशासनिक अधिकारी (IAS) को कलैक्टर कहना चालू कर दिया कि कलैक्टर आ गया कलैक्टर आ गया।
इस प्रकार गांवों के लोगों ने लगान कलैक्ट करने वाले को कलेक्टर कहना प्रारंभ कर दिया। कलेक्टर को देखकर गांव वाले अपना सबकुछ छोड़कर जंगलों में भाग जाते थे क्योंकि उस समय टैक्स का एक ही साधन था लगान और कलेक्टर लोग लगान वसूलने का काम बड़ी प्राथमिकता और निर्दयता से करते थे।
IAS अधिकारियों के अंहकार मिटाने के कुछ सुझाव निम्न प्रकार हैं - कोई भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा पास करता है उसके बाद उसका पंदाकन इस प्रकार करना चाहिए -
(1) परीक्षा पास करने बाद सबसे पहले उसका पदांकन एक वर्ष के लिए किसी शासकीय कार्यालय में भृत्य या किसी गांव का कोटवार बनाना चाहिए। वेतन उसको भृत्य या कोटवार की ही मिलना चाहिए।
(2) एक वर्ष के लिए किसी शासकीय अस्पताल में बार्डवाय के पद पर पदांकन करना चाहिए जिससे वो अस्पतालों में दुखी, मजबूर, बेबस इंसानों का दर्द देखकर सेवा भावना जागृत हो। वेतन उसे वार्डबाय का ही मिलना चाहिए।
(3) एक वर्ष के लिए किसी शासकीय कार्यालय में चैकीदार बनाना चाहिए ।
(4) एक वर्ष के लिए पटवारी के पद रख कर पटवारी का कार्य लिया जाना चाहिए।
(5) दो वर्ष के लिए किसी प्राथमिक विद्यालय का टीचर बनाना चाहिए। जिस प्रकार अन्य शिक्षकों से गर्मी के अवकाश में शाला त्यागी बच्चों, नव प्रवेशी बच्चों का मलीन, झुग्गी बस्तियों, में सर्वे कराया जाता है वैसा ही सर्वे करवाना चाहिए। जिससे जब वो इन बस्तियों में घूमेंगें तो लोगों का दर्द मालुम हो सके और समझ सकें कि ये इन झुग्गी बस्तियों में क्यों रहते हैं इनकी समस्यायें क्या हैं । इस दौरान उनको एक शिक्षक का वेतन दिया जाना चाहिए।
(6) एक वर्ष के लिए लिपिक के पद पर रखा जाना चाहिए ।
(7) एक वर्ष के लिए सहायक ग्रेड 2 के पद पर रखा जाना चाहिए ।
(8) एक वर्ष अधीक्षक के पद पर रखा जाना चाहिए ।
(9) एक वर्ष के लिए सहायक संचालक या नायब तहसीलदार के पद रखा जाना चाहिए ।
(10) ऊपर जितने भी पद बतलाये गये उन पदों पर IAS अधिकारी को संविदा आधार पर रखा जाना चाहिए।
इस प्रकार की पदस्थापना से आई.ए.एस अधिकारियों को व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त होगा और वो आम जन की समस्याओं को समझ सकेंगें ।
यदि इस प्रकार के पदों पर दस साल इस परीवीक्षा अवधि के दौरान उनका कार्य व्यवहार ठीक रहता तो ही उनको जिले का मुख्यकार्यपालन अधिकारी, कलेक्टर, आयुक्त, सचिव, प्रमुख सचिव अपर मुख्य सचिव, मुख्यसचिव बनाना चाहिए।
इसी प्रकार आई.एफ.एस. अफसरों को सबसे पहले फारेस्ट गार्ड, नाकेदार, उप रेंजर, रेंजर आदि पदों पर रहने के बाद वनमंडअधिकारी बनाना चाहिए।
इसमें यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि आई.ए.एस. और आई.एफ.एस पदस्थापना जिस राज्य में की गई है उस राज्य में परीवीक्षा अवधि ना देकर दूसरे राज्य में दी जाए।
इसमें एक महत्वपूर्ण बात यह है कि उच्च न्यायलयों में चल रहे प्रकरणों में आई.ए.एस. अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाना चाहिए ।
वर्तमान में देश की अदालतों में 3 करोड़ प्रकरण लंबित हैं जिनमें से अधिकांशतः IAS अधिकारियों और राजनेताओं के आदेशों के विरूद्व हैं। यदि सरकार न्यायलय में हारती है तो जिस IAS अधिकारियों के आदेश के विरूद्व न्यायालय ने वादी के पक्ष में निर्णय दिया है ऐसे प्रकरणों में आई.ए.एस अधिकारी की जिम्मेदारी और तय होनी चाहिए ऐसे प्रकरणों की फीस की वसूली इनके वेतन से की जायेगी। अभी वर्तमान में यह होता है कि बिना सोचे समझे किसी के खिलाफ कुछ भी फैसला कर दिया जाता है। क्योंकि मालूम है कि सरकार का पैसा खर्च होना है सरकारी अधिकारियों की जेब से कुछ भी नहीं जाना। यदि जिम्मेदारी तय हो जायेगी तो जो भी फैसला होगा वह काफी सोच समझकर किया जायेगा ।
ब्यूरोक्रेटस में अहंकार क्यों
इनको मालूम है कि 60 वर्ष तक हम जहां भी जायेंगें हमें गाड़ी, सेवक, बंगला मिलना ही हैं चाहें हम कहीं भी रहें, कुछ भी करें, इसलिए ये आम जनता को हीन दृष्टि से देखते हैं और खुद को श्रेष्ठ समझते हैं।
रमेश राठौर
मो. 9425004231